

• माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला है बछेंद्री पाल
• कभी बेरोजगारी से हो गई थीं निराश फिर एवरेस्ट चढ़ रचा इतिहास
• 24 मई 1954 को जन्मीं बछेंद्री पाल
Bachendri Pal का नाम हममें से हर किसी ने सुना होगा, भारत की पहली महिला पर्वतारोही का टाइटल बछेंद्री पाल के नाम पर है। उनका नाम सुनते ही हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो उठता है बिल्कुल एवरेस्ट की तरह। बछेंद्री एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली पहली भारतीय महिला के तौर पर अपना नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से अपना नाम लिख इतिहास रच दिया।
बछेंद्री पाल के बारे में..
बछेंद्री पाल का जन्म भारत के उत्तरी राज उत्तराखंड में हुआ था जिसे देवभूमि कहा जाता है। हिमालय की गोद में बछेंद्री का बचपन बीता। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वे पेशेवर पर्वतारोही के तौर पर अपनी पहचान कायम कर पाएंगी। उन्होंने दृढ़ संकल्प, लगन और अपनी मेहनत लगभग असंभव लगने वाले इस लक्ष्य को पूरा कर महिला शक्ति की मिसाल पेश की। 24 मई 1954 को जन्मीं बछेंद्री के जिंदगी की कहानी काफी संघर्षों से भरी है। उनकी राह में परेशानी और रुकावटों का लंबा सिलसिला चला। लेकिन उन सभी से लड़ते हुए उन्होंने अंत में जीत हासिल किया। उनकी उपलब्धि के लिए साल 2019 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
23-24 मई का दिन उनके जीवन का खास दिन
बछेंद्री पाल के जीवन के लिए साल 1984 में 23 मई का दिन बेहद खास है। भारत की बेटी बछेन्द्री पाल ने इस दिन दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर देश को गौरावान्वित किया था। 24 मई को बछेंद्री का जन्मदिन भी होता है। इस लिहाज से उनकी जिंदगी में मई का महीना काफी खास है।
बचपन बीता संघर्षों में
24 मई 1954 को उन्होंने एक कृषक परिवार में जन्म लिया। दूसरे बच्चों की ही तरह उनका बचपन बीता, लेकिन बछेंद्री को पढ़ाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। वे पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहती थीं, यही वजह थी कि उन्होंने बीएड की डिग्री ली।
लेकिन उन्हें कोई नौकरी नहीं मिल रही थी। बचपन से ही वे पहाड़ों के प्रति उनके जीवन में काफी प्रेम था। जब उन्हें कोई नौकरी नहीं मिल रही थी तो उन्होंने पर्वतारोही बनने के लिए ट्रेनिंग करने का फैसला किया। कुछ प्रयासों के बाद उन्होंने ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ में दाखिला ले लिया और नई राह पर निकल पड़ीं।
परिवार नहीं चाहता था बछेंद्री बनें पर्वतारोही
साल 1982 की बात है जब उन्होंने एडवांस कैम्प के तौर पर गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई पूरी की तब उनके स्टेमिना और दक्षता देखकर ट्रेनर हैरान हो गए। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे एवरेस्ट की चढ़ाई करेंगी। उन्होंने खुद को प्रोफेशनल पर्वतारोही के रूप में तैयार करने का काम शुरू किया। लेकिन उनका परिवार नहीं चाहता था कि वे पर्वतारोही के रूप में अपने करियर का चुनाव करें। लेकिन उन्होंने अपनी राय नहीं बदली। आखिरकार 23 मई 1984 को उन्होंने 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर ‘सागरमाथा (एवरेस्ट)’ पर भारतीय झंडा लहरा कर देश का सर गर्व से ऊंचा कर दिया।

