जैविक खेती कर महिलाएं ला रही हैं अपने जीवन में बदलाव, मिट्टी को संवारने के साथ जैविक खेती को दे रही हैं बढ़ावा!

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यह कहानी है बिहार के एक छोटे से गांव केड़िया की जहां की महिलाएं जैविक खेती के भविष्य को संवार रही हैं। ये ग्रामीण महिलाएं रासायनिक खेती को छोड़कर गोबर खाद की खेती पर केंद्रित हैं और इस बात का दावा करती हैं कि रासायनिक खेती से होने वाली परेशानियों से उन्हें निजात मिल रही है।

बिहार का पहला जैविक गांव

बिहार से लगभग 170 किमी की दूरी पर स्थित है केड़िया गांव जो कि जमुई जिले के अंदर आता है। इस गांव की खासियत यह है कि यह बिहार जिले का पहला जैविक गांव बन चुका है। कुल 100 घरों की आबादी वाले केड़िया गांव में आधे से ज्यादा घरों के किसान जैविक खेती कर रहे हैं। गांव वालों का मानना है कि जैविक खेती करने के बाद यहां के लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है साथ ही गांव की मिट्टी के पोषक तत्वों में भी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। किसानों को रासायनिक खाद से होने वाले हाथों में फोडेक जैसे लक्षणों से भी निजात मिल रहा है। आज स्थिति यह है कि गांव में जैविक कृषि से हो रहे परिवर्तन को देखने के लिए अब कई राज्यों के सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों के लोग जैविक खेती को जानने और सीखन के उद्देश्य से केड़िया पहुंच रहे हैं। आस-पास के गांवों ने भी केड़िया के जैविक खेती के मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया है।

केड़िया की महिलाओं का अहम योगदान

केड़िया का जैविक गांव बनने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान यहां की महिलाओं का है या फिर इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि केड़िया को जैविक गांव बनाने के लिए महिला किसानों के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। केड़िया की महिला किसान ने एक अखबार में दिए साक्षात्कार में कहा है कि गांव की महिलाएं गांव के गोबर और मूत्र को एक जगह इकट्ठा करती हैं उससे खाना बनाने वाली गैस बनाती हैं और फिर उन्ही गोबर को खेतों में खाद के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। उनका कहना है कि जैविक खाद से उन्हें अच्छी फसल तो मिलती है साथ ही इससे मिलने वाले फसलों के खाद्य उत्पादों का स्वाद भी अच्छा होता है। उनके बच्चे बीमार भी नहीं होते और किसानों का काफी पैसा भी बच जाता है।

छोटे-छोटे प्रयासों से जैविक गांव बना केड़िया

केड़िया में जैविक खेती की शुरूआत साल 2016 में हुई जब ग्रीनपीस इंडिया के उस समय के वरिष्ठ फू़ड फॉर लाइफ कैंपेन इश्तियाक अहमद ने गांव के लोगों को जैविक खेती के फायदे और रासायनिक खेती के नुकसान को लेकर जागरूक किया। साथ ही ‘Bihar Living Soils’ जैसे अभियानों से भी केड़िया को जोड़ा गया।

जैविक खेती से संबंधित अभियानों पर केड़िया की महिलाओं ने काफी मेहनत की और लगन से काम किया जिसका नतीजा है कि आज केड़िया जैविक गांव बनकर उभरा है।

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Dr. Kirti Sisodhia

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