Mahalaya, जिसे सर्व पितृ या पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है, पितृ पक्ष का अंतिम दिन है। इस दिन हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और उन्हें तर्पण, श्राद्ध एवं पूजन के माध्यम से संतुष्ट करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारी ओर से किए गए कर्मों को स्वीकार करते हैं। महालया के दिन किए गए तर्पण और श्राद्ध से पितरों की तृप्ति होती है और वे अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं।
महालया और मां दुर्गा का संबंध
महालया का महत्व सिर्फ पितरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मां दुर्गा के आगमन का संकेत भी देता है। इस दिन मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है और पंडाल सजने लगते हैं। इसे देवी दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन का संधिकाल माना जाता है। महालया से नवरात्रि की शुरुआत तक पूरे वातावरण में देवी की आराधना का माहौल बन जाता है।
महालया का पौराणिक महत्व
कथा के अनुसार, अत्याचारी राक्षस महिषासुर ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। उन्हें वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या मनुष्य उनका वध नहीं कर सकता। देवताओं ने अपनी सामूहिक शक्तियों से मां दुर्गा का सृजन किया। देवी ने नौ दिनों के भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया और संसार को उसके अत्याचार से मुक्त कराया। इस दिन को मां दुर्गा के धरती पर आगमन के रूप में मनाया जाता है और इसे महालया कहा गया।
पंचबलि और प्रायश्चित
Mahalaya अमावस्या के दिन पंचबलि कर्म का विशेष महत्व है। इसमें गोबलि, श्वानबलि, काकबलि और देवादिबलि जैसे कर्म किए जाते हैं। इनका उद्देश्य केवल पितरों को संतुष्ट करना ही नहीं, बल्कि पापों का प्रायश्चित भी करना है। इसके अलावा इस दिन पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध और सपिंडीकरण जैसे कर्म किए जाते हैं।
महालया के विशेष पूजा-विधान
- गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है।
- पीपल के वृक्ष की जड़ को दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ डालकर सींचना चाहिए।
- कई स्थानों पर महिषासुरमर्दिनी पाठ का आयोजन होता है, जिसमें मां दुर्गा की महिमा का वर्णन होता है।
पूर्वजों के प्रति आस्था और समर्पण
महालया का पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह न केवल पितरों को श्रद्धांजलि और विदाई देने का अवसर है, बल्कि मां दुर्गा के स्वागत का संधिकाल भी है। यह पर्व हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और देवी दुर्गा की आराधना के लिए वातावरण तैयार करने का अवसर देता है। महालया हमें यह सिखाता है कि अपने पितरों का सम्मान और देवी की पूजा जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जिसे हमेशा बनाए रखना चाहिए।