Kailash Mansarovar Yatra: पांच साल बाद फिर खुले आस्था के द्वार!

Kailash Mansarovar Yatra: भारत की सबसे पवित्र और रोमांचकारी तीर्थयात्राओं में से एक कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर शुरू हो गई है। पांच साल के लंबे इंतजार के बाद श्रद्धालुओं का पहला जत्था सिक्किम के नाथूला दर्रे से रवाना हुआ, जिसे राज्यपाल ओम प्रकाश माथुर ने खुद हरी झंडी दिखाकर विदा किया। इस मौके ने न सिर्फ धार्मिक महत्व को फिर से जीवंत किया बल्कि भारत-चीन मित्रता और पर्वतीय संस्कृति की भावना को भी मजबूती दी।

जत्थे के स्वागत में उमड़ा उत्साह

यात्रा की शुरुआत से पहले सिक्किम के राज्यपाल ने यात्रियों से मुलाकात कर उनकी सुरक्षा और सुखद यात्रा की कामना की। उन्होंने इस मार्ग की बहाली को अंतरराष्ट्रीय मैत्री और भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का प्रतीक बताया। उनके अनुसार, यह यात्रा हिंदू, बौद्ध और जैन समुदायों की गहरी आस्था को जोड़ती है।

डॉक्टर और एस्कॉर्ट अधिकारी साथ

पहले जत्थे में कुल 33 यात्री, दो एस्कॉर्ट अधिकारी और एक डॉक्टर शामिल थे। सभी यात्रियों का पूरा हेल्थ चेकअप किया गया और उन्हें हाई एल्टीट्यूड में जाने से पहले दो अलग-अलग लोकेशन पर अनुकूलन प्रक्रिया (Acclimatization) से गुजरना पड़ा पहले 18वां मील और फिर शेराथांग।

सुरक्षा और व्यवस्था

इस यात्रा की पूरी जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय, सिक्किम पर्यटन विकास निगम, और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) ने संभाली है। हर स्तर पर यात्रियों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और सुविधा का ध्यान रखा गया। चाहे मेडिकल इमरजेंसी हो या रुकने और खाने की व्यवस्था सभी कुछ प्रोफेशनल और ट्रस्टेड तरीके से किया गया है।

चीन सीमा पार भी तैयारियां पूरी

नाथूला दर्रा पार करने के बाद, यात्रियों को चीन की सीमा में भी पूरा सहयोग और रिसेप्शन मिलेगा। वहां से वे कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की ओर अपने आध्यात्मिक सफर को जारी रखेंगे।

श्रद्धालुओं ने जताई खुशी

शैलेन्द्र शर्मा, जो पहले जत्थे में शामिल थे, ने एएनआई से बातचीत में कहा, “कई साल बाद यात्रा हो रही है और सरकार ने शानदार व्यवस्था की है। ITBP का पूरा सपोर्ट मिल रहा है, यह जीवन का सबसे पवित्र अनुभव है।”

वहीं एक महिला यात्री ने कहा, “यहां दो से चार दिन रहे, और हर चीज़, from खाना, रहना, मेडिकल, सब कुछ बहुत अच्छी तरह से संभाला गया। सभी लोग फ्रेंडली और प्रोफेशनल हैं।”

आस्था, संस्कृति और डिप्लोमेसी का संगम

कैलाश मानसरोवर यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत, पर्वतीय जीवनशैली, और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भी कहानी है। इस मार्ग के दोबारा खुलने से ना सिर्फ पर्यटन को बूस्ट मिलेगा, बल्कि लोकल इकॉनमी, रोजगार और भारत-चीन सांस्कृतिक संबंधों को भी नया आयाम मिलेगा।

पांच साल का इंतजार खत्म

सिक्किम के नाथूला दर्रे से फिर एक बार भक्तों का जत्था कैलाश की ओर बढ़ चला है। यह सफर केवल हिमालय की ऊंचाइयों का नहीं, बल्कि आस्था की गहराइयों का भी है। यात्रा की फिर से शुरुआत इस बात का संकेत है कि भारत हर चुनौती के बाद फिर उठ खड़ा होता है- धर्म, सेवा और समर्पण के साथ।

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Rishita Diwan

Content Writer

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