Dhokra Art: छत्तीसगढ़ की सबसे मशहूर शिल्प कला

Dhokra Art: जब छत्तीसगढ़ी शिल्प कला की बात होती है तो सबसे पहला नाम ढोकरा शिल्प का आता है। ढोकरा शिल्प (Dhokra Art) ना सिर्फ बस्तर बल्की पूरे छत्तीसगढ़ की पहचान है। मुख्य रूप से आदिवासियों के द्वारा बनाए जाने वाले इस आर्ट को देश के साथ विदेशों में भी पहचान मिल गई है। आइए जानते हैं क्या है ढोकरा शिल्प और ये कैसे बनाई जाती है।

कैसे बनता है ढोकरा शिल्प?

ढोकरा शिल्प बनाने में काफी मेहनत और समय लगता है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी और भूसा मिलकार उससे ढांचा तैयार किया जाता है। इस ढांचे के सूखने के बाद उसपर मोम से तैयार किए गए धागे जैसी स्ट्रेन को लपेटा जाता है। मोम के इस धागे से ही मिट्टी के ढांचे के ऊपर जो आकृति चाहिए उसे आकार दिया जाता है। डिजाइन भी इसी मोम के धागे से उकेरी जाती है। इसके बाद वापस इस पर लाल मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है। ऊपर की इस परत मे एक छेद भी छोड़ा जाता है। जहां से पिघली हुई धातु डाली जाती है।

तैयार ढांचे को भट्ठी में पका लिया जाता है, भट्टी में जाने से मिट्टी की दो परतों के बीच मोम का धागा पिघल जाता है और अंदर उसकी आकृति वाली जगह खाली हो जाती है। जब बनाए गए छेद से पिघली हुई हुई धातु को डाला जाता है तो वह उन्हीं आकृतियों में जाकर सेट हो जाती है।  जब सांचे में पिघली हुई धातु पूरी तरह से ठंडी हो जाती है तब उपर से मिट्टी की परत को तोड़ दिया जाता है। इसके बाद खूबसूरत ढोकरा शिल्प (Dhokra Art) तैयार हो जाता है।

हजारों साल पुरानी है ये कला

कहा जाता है ढोकरा शिल्प साढ़े चार हजार सालों से भी पुरानी है। इसे ढोकरा नाम डोकरा दमार से लिया गया है जो एक नौमैटिक ट्राइब है। एक ढोकरा शिल्प बनाने में एक दिन का समय लग जाता है। इस बेहद जटिल और कलात्मकल शिल्प को अभी भी वो पहचान मिलना बाकी है जिसकी यह हकदार है।

कहां मिलेगा ढोकरा शिल्प?

ढोकरा शिल्पकला में आपको आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। ढोकरा शिल्प में अक्सर देवी-देवता, नंदी, जंगली जानवरों की आकृति को उकेरा जाता है। ढोकरा शिल्प को छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से भी प्रमोट करने की किए कदम उठाए गए हैं। इस कला को छत्तीसगढ़ एम्पोरियम, सी-मार्ट जैसे राज्य सकार के आउलेट में बिक्री के लिए रखा जाता है। इसके साथ ही ढोकरा शिल्प कई ऑनलाइन स्टोर्स में भी उपलब्ध कराया गयाहै।

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Rishita Diwan

Content Writer

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