Chhattisgarh Wildlife Sanctuary: छत्तीसगढ़ अपनी घनी हरियाली, वन संपदा और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। राज्य में कुल 11 वन्यजीव अभ्यारण्य स्थापित हैं, जो वन्य जीवों के संरक्षण, अध्ययन और संवर्धन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अभ्यारण्य न केवल दुर्लभ प्रजातियों का घर हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में भी योगदान देते हैं। अधिकांश अभ्यारण्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत 1970–80 के दशक में स्थापित किए गए और कई आज टाइगर रिज़र्व और विशेष संरक्षण परियोजनाओं का हिस्सा हैं।
तमोरपिंगला अभ्यारण्य

- सूरजपुर (608 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1978
Chhattisgarh Wildlife Sanctuary
छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा अभ्यारण्य, साल और मिश्रित जंगलों से घिरा हुआ। तमोर और पिंगला नामक वनखंडों पर आधारित यह क्षेत्र बाघ संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ विभिन्न प्रकार के स्तनधारी, पक्षी और दुर्लभ वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
सीतानदी अभ्यारण्य

- धमतरी (559 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1974
सीतानदी नदी के कारण प्रसिद्ध यह अभ्यारण्य जंगलों और जल स्रोतों से भरपूर है। यहाँ वन भैंसा, हिरण, तेंदुआ और अनेक पक्षियों की प्रजातियाँ मिलती हैं। यह क्षेत्र बाद में उदंती–सीतानदी टाइगर रिज़र्व में सम्मिलित हुआ।
अचानकमार अभ्यारण्य

- मुंगेली (552 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1975
घने घने साल के जंगलों से घिरा यह अभ्यारण्य बाघों का प्रिय आवास माना जाता है। बाद में इसे बायोस्फियर रिज़र्व का दर्जा भी मिला। यहां वन्यजीव संरक्षण और अनुसंधान के कई महत्वपूर्ण प्रयास चल रहे हैं।
सेमरसोत अभ्यारण्य

- बलरामपुर/सरगुजा (430 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1978
अंबिकापुर के निकट स्थित यह शांत और कम आबादी वाला अभ्यारण्य हरिण, भालू, तेंदुआ और कई पक्षियों का सुरक्षित घर है। प्राकृतिक वन घनत्व यहाँ को विशिष्ट बनाता है।
गोमरदा अभ्यारण्य

- सारंगगढ़ (278 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1975
यह क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से मृग, नीलगाय, भालू, लोमड़ी और पक्षियों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
पामेड़ अभ्यारण्य

- बीजापुर (265 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1983
Chhattisgarh Wildlife Sanctuary
जंगली बाइसन के संरक्षण के लिए स्थापित यह अभ्यारण्य बासीन, भालू और कई दुर्लभ पक्षियों का निवासस्थान है। बीजापुर के घने जंगल इसे और भी संपन्न बनाते हैं।
बारनवापारा अभ्यारण्य

- महासमुंद/बलौदाबाजार (245 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1976
यह अभ्यारण्य हरिणों के लिए प्रसिद्ध है। यहां घने जंगल और शांत वातावरण इसे पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं। हाथियों का प्राकृतिक मार्ग भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है।
उदंती अभ्यारण्य

- गरियाबंद (231 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1983
उदंती अभ्यारण्य दुर्लभ वन भैंसा संरक्षण का प्रमुख केंद्र है। यह बाद में सीतानदी के साथ मिलकर टाइगर रिजर्व में बदला गया। इसके जंगलों में तेंदुआ, स्लॉथ बियर और कई पक्षियों की प्रजातियाँ देखने मिलती हैं।
भोरमदेव अभ्यारण्य

- कबीरधाम (163 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 2001
यह अभ्यारण्य आसपास के भोरमदेव मंदिर क्षेत्र से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र बारहसिंघा, भालू, तेंदुआ और दुर्लभ पक्षियों के आवास के रूप में प्रसिद्ध है।
भैरमगढ़ अभ्यारण्य

- बीजापुर (139 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1983
बीजापुर का यह अभ्यारण्य जंगलों और पहाड़ियों से घिरा है। यहाँ अक्सर तेंदुए, हिरण और पक्षियों की अनूठी प्रजातियाँ दिखाई देती हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में होने के बावजूद यह जैव विविधता का मजबूत केंद्र है।
बादलखोल अभ्यारण्य

- जशपुर (105 वर्ग किमी)
- स्थापना वर्ष: 1975
छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा अभ्यारण्य, लेकिन जैव विविधता से समृद्ध। यहाँ हाथियों का मूवमेंट देखा जाता है। पहाड़ी और ठंडे मौसम वाला यह क्षेत्र वन्यजीवों के लिए आदर्श है।
छत्तीसगढ़ के अभ्यारण्य
Chhattisgarh Wildlife Sanctuary
इन अभ्यारण्यों की स्थापना राज्य और केंद्र सरकार द्वारा संयुक्त रूप से वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के आधार पर की गई। कई अभ्यारण्य बाघ संरक्षण परियोजना (Project Tiger) और वन भैंसा संरक्षण जैसी विशेष योजनाओं के अंतर्गत आते हैं। स्थानीय वन विभाग, विशेषज्ञ, स्थानीय जनजातियाँ और पर्यावरण मंत्रालय मिलकर इन्हें संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ के ये अभ्यारण्य न केवल प्रकृति को सुरक्षित रखते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जैव विविधता का अनमोल भंडार भी बचाए हुए हैं।
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