छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले से संबंध रखने वाले पंडी राम मंडावी गोंड मुरिया जनजाति के प्रमुख कलाकार हैं। 68 वर्षीय मंडावी ने बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हुए उसे वैश्विक पहचान दिलाई है। उन्होंने पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी शिल्पकला के क्षेत्र में अनोखा योगदान दिया है। उनकी कला को सम्मानित करते हुए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है।
12 साल की उम्र में शुरू हुआ सफर
पंडी राम मंडावी ने महज 12 साल की उम्र में अपने पूर्वजों से यह कला सीखी। अपने कौशल और समर्पण से उन्होंने बस्तर की संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। बस्तर बांसुरी, जिसे स्थानीय भाषा में ‘सुलुर’ कहा जाता है, उनके योगदान का प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा, लकड़ी पर उकेरी गई चित्रकारी और मूर्तियों के माध्यम से उन्होंने बस्तर की कला को देश-विदेश में पहचान दिलाई।
वैश्विक स्तर पर कला का प्रदर्शन
पंडी राम मंडावी ने एक सांस्कृतिक दूत के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन आठ से अधिक देशों में किया है। उनकी कला न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी खूब सराही गई। उनकी कार्यशालाओं के माध्यम से 1,000 से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित करके उन्होंने इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का काम किया।
‘सुलुर’ और लकड़ी शिल्पकला की विशेषता
पंडी राम मंडावी की विशेष पहचान उनकी बनाई गई बस्तर बांसुरी ‘सुलुर’ के कारण है। इस बांसुरी की ध्वनि और संरचना अद्वितीय है, जो स्थानीय और विदेशी संगीत प्रेमियों को आकर्षित करती है। इसके अलावा, उनकी लकड़ी की कलाकृतियां, जिनमें उभरे हुए चित्र और मूर्तियां शामिल हैं, बस्तर की संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
कला के प्रति समर्पण का सम्मान
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 30 हस्तियों को पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। इसमें छत्तीसगढ़ से पंडी राम मंडावी का नाम शामिल है। यह प्रतिष्ठित सम्मान उनके दशकों के योगदान और कला के प्रति समर्पण का प्रतीक है।