

व्हीलचेयर पर बैठी ये छोटी सी लड़की भारत की उभरती तीरंदाज हैं। जो झारखंड में रांची के सिल्ली में ओलंपिक की तैयारी कर रही हैं। तीरंदाजी का गुरुकुल कहे जाने वाले बिरसा मुंडा तीरंदाजी सेंटर सिल्ली में सुरभि अपने लक्ष्य पर निशाना साध रही है।
सुरभि के बारे में
सुरभि ने ग्यारवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी है। वे जन्म से ही दिव्यांग है और चल नहीं सकती। लेकिन सुरभि ने अपने शारीरिक अक्षमता को कभी अपने सपने के बीच नहीं लाना चाहती थीं, यही वजह है कि उन्होंने तीरंदाजी सीखने की ठानी।
सुरभि के पिता महादेव सिंह एक होटल में काम करते हैं और उनकी मां मां गृहिणी है। आर्थिक समस्या के बावजूद वे अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए काफी मेहनत करती हैं। सुरभि की मां व्हील चेयर से करीब चार किमी का सफर एक घंटे में तय कर सुरभि को रोज आर्चरी सेंटर पहुंचाती है। सुरभि के माता-पिता की तमन्ना है कि बेटी का देश के लिए खेलने का सपना पूरा हो सके।
आत्मविश्वास से भरी हैं सुरभि
बातचीत के दौरान सुरभि आत्मविश्वास से भरी लगती हैं, वे बताती हैं कि उसका सपना पैरा ओलंपिक खेलकर देश के लिए पदक जीतना है। वे कहती हैं कि सिल्ली के दूसरे तीरंदाजों को देखकर ही उसे आर्चरी करने के बारे में ख्याल आया और अब वे लगातार टारगेट को देखकर लक्ष्य साध रही हैं।
सुरभि के कोच कमलेश कहते हैं कि सुरभि भले ही दिव्यांग हो, लेकिन उसका शरीर तीरंदाजी के लिए पूरी तरह से फिट है। वे कहते हैं कि सुरभि तेजी से सीख रही है। नजदीक का निशाना बेहतरीन होने के बाद अब उसकी टारगेट की दूरी को बढ़ाया गया है। कोच कहते हैं कि सुरभि में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करने की प्रतिभा और काबिलियत दिखाई देती है।
सुरभि की राह फिलहाल आसान नहीं है, उनके साथ साथ उसकी मां मुन्नी देवी का भी संघर्ष जारी है। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद पूरा परिवार सुरभि के सपनों को पूरा करने में लगा है। मु्न्नी देवी कहती हैं कि वे हर रोज सिल्ली के राजाबेड़ा से सुरभि को व्हील चेयर पर बिठाकर तीरंदाजी सेंटर आती हैं। चार किमी का यह सफर करीब एक घंटे में पूरा करती हैं, लेकिन बेटी के सपने को पूरा करने में मां किसी तरह का कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं।
बिरसा मुंडा आर्चरी सेंटर सिल्ली में अभ्यास करने वाली दूसरी तीरंदाज भी सुरभि का हौसला बढ़ाते हैं।
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