संघर्षों से भी नहीं मानी हारी, मां के संघर्षों से प्रेरणा लेकर पहुंची वर्ल्ड कप!

मुश्किलों के आगे बड़े-बड़े लोग हार मान लेते हैं। लेकिन झारखंड के गुमला जिले की रहने वाली फुटबॉलर सुधा अंकिता टिर्की मिसाल हैं, जिन्होंने हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने मंजिल को पा लिया। उनके इसी जज़्बे के पीछे थीं उनकी मां, जिन्होंने बेटी को अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
 

सुधा अंकिता को बचपन से ही काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा। उनकी माँ ने एक स्कूल में झाड़ू-पोंछा कर अपने बच्चों को बड़ा किया। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि सुधा के परिवार को भूखा भी रहना पड़ा लेकिन सुधा ने फुटबॉल को अपने से दूर नहीं होने दिया और अपनी मेहनत से फीफा वर्ल्ड कप की टीम में अपनी जगह बनाई।

 

ऐसा रहा जीवन

8 अक्टूबर, 2005 को जन्मीं झारखंड की फॉरवर्ड प्लेयर सुधा के अनुसार उनके पिता ने बचपन में ही उनके परिवार का साथ छोड़ दिया। वो सुधा की मां के साथ मारपीट भी करते थे। जब सुधा सिर्फ पांच साल की थी, तब उनके पिता ने उन्हें और उनकी बहन को घर से निकाल दिया।

 
मां ने परिवार को संभाला और कई जगह मजदूरी और नौकरी कर उन्हें और उनकी बड़ी बहन को संभाला। लेकिन मां की आय से सिर्फ दो समय का खाना मिल पाता था।

कई मुश्किलों के बावजूद सुधा गुमला के सेंट पैट्रिक इंटर कॉलेज में 11वीं में दाखिल हुईं। इसे याद करते हुए वो कहती हैं कि कोविड का दौर उनके लिए काफी मुश्किलों से भरा रहा। स्कूल बंद हो गए, तो माँ का काम भी बंद हो गया। तब उन्हें भूखा भी रहना पड़ा था। जैसे-तैसे उन्होंने परिवार के साथ मिलकर अपना समय बिताया।

 
अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप में चयनित होने पर सुधा रो पड़ी। एक वेबसाइट में छपे उनके साक्षात्कार के मुताबिक पहले घर की ज़रूरतों को पूरा करने में उनकी माँ पर कर्ज़ भी हो गया, जिसे उन्होंने फुटबॉल खेलकर मिले पैसों से चुकाया। सुधा अंकिता बताती हैं कि वह बचपन से ही फुटबॉल खेलने की शौकीन हैं। उनके भीतर गांव में लड़कों को फुटबॉल खेलते देख इस खेल के प्रति रूचि पैदा हुई। उन्हें लगा कि उन्हें भी फुटबॉल खेलना चाहिए और फिर उन्होंने गांव की गलियों में खेल शुरू किया। आज सुधा खुश हैं और देश के साथ परिवार के लिए भी बहुत कुछ करना चाहती हैं।
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Dr. Kirti Sisodia

Content Writer

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