आज हर भारतीय के ज़ुबां पर 23 साल की लवलीना बोरगोहेन का
नाम है। टोक्यो ओलंपिक में अपने शानदार परफॉरमेंस से सेमीफाइनल तक पहुंचने वाली
लवलीना बोरगोहेन असम के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखती हैं। ओलंपिक आयोजन के 12
वें दिन उनका मुकाबला तुर्की के बुसेनाज सुरमेनेली से हुआ। मुक्केबाजी के 69
किग्रा भार वर्ग के सेमीफाइनल में भले ही उन्हें हार मिली हो पर उनके खेल ने हर
भारतीय का सर गर्व से ऊंचा किया है। उन्होंने पहले ही भारत के लिए ब्रॉज मेडल
पक्का कर दिया था।
लवलीना असम के गोलाघाट के पास के एक गांव से आती हैं जहां पर
जाने के लिए सड़के तक नहीं है। पर यह उनकी कामयाबी का ही असर है कि अब उनके गांव
तक के लिए सड़क बनने का काम शुरू हो गया है। खेती और मजदूरी करने वाले लवलीना के
माता-पिता ने अपने तीनों बेटियों को खेल के लिए प्रेरित किया। ओलंपिक में पदक
जीतना लवलीना का सपना था। भले ही वह ओलंपिक में गोल्ड नहीं जीत सकीं पर उनका सफर
अभी खत्म नहीं हुआ है। आज लवलीना पर उनके माता-पिता के साथ पूरे देश को गर्व है।