Carissa carandas:
करौंदा को ही अंग्रेजी में Carissa carandas कहते हैं। ये सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। करौंदा एक तरह का खट्टा फल होता है। इसके फल में आयरन की बहुत ज्यादा मात्रा होती है यही वजह है कि देसी रूप में इसे ‘आयरन की गोली’ भी कहते हैं। इसकी खेती के लिए बहुत स्पेशल मिट्टी या देखरेख की जरूरत नहीं होती है। इसे कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है। भारत के अलावा, दक्षिणी अफ्रीका और मलेशिया में भी इसकी खेती होती है।
औषधीय गुणों से भरपूर करौंदा
करौंदा के फल खट्टे और स्वाद में कसैले भले ही लगते हैं, लेकिन इसके गुणों की बात करें तो इसमें बहुत मात्रा में आयरन पाए जाते हैं। जिसकी वजह से एनीमिया रोग के उपचार के रूप में इसके इस्तेमाल की बात कही जाती है खासकर महिलाओं के लिए ये फायदेमंद होते हैं। इस फल में एंटीऑक्टीसडेंट, एंटीअल्सर, एंटीडायबिटीज, हेपेप्रोटेक्टेव, कार्डियोवस्कुलर, एंटीमैरलोरिया, एंटल्मिंटिक, एंटीवायरल और एंटीस्कोरब्यूटिक गुण पाए जाते हैं।
खेती के लिए मिट्टी और जलवायु
आईसीएआर की मानें तो करौंदा को सभी तरह की मिट्टी में आसानी से उगा सकते हैं। यह 10 पी.एच मान वाली जमीन में आसानी से होती है। इसको रोपाई के शुरुआत में ही बस थोड़ी सी देखभाल की जरूरत होती है। करौंदा की प्रमुख किस्में कोंकण बोल्ड, सी.एच.ई.एस.के-II-7, सी.एच.ई.एस.के-वी-6 होती हैं। पौधे बीज से तैयार होते हैं। इसके साथ ही मरु गौरव, थार कमल, पंत सुवर्णा, पंत मनोहर, पंत सुदर्शन भी इसके खास किस्में हैं।
रोपाई और सिंचाई का समय
अगस्त-सितंबर माह में पूरे पके हुए फलों से बीज निकालकर जल्द ही नर्सरी में बोई जाती है। इसकी बुवाई जुलाई-अगस्त महीने में ही सही होती है। शुरुआती वर्षो में नाइट्रोजन के इस्तेमाल से पौधा तेजी से बढ़ जाता है और जल्दी ही झाड़ीदार होता है। नए बगीचे में गर्मियों में 7 से 10 दिनों में और सर्दियों में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई होनी चाहिए। इसमें कीट और रोग कम होते हैं।