कौन हैं पैरा आर्चर शीतल देवी? बिना हाथों के कैसे बनीं तीरंदाज? 

Sheetal devi: भारत की पैरा आर्चर शीतल देवी ने भले ही पैरा ओलंपिक्स में मेडल ना जीता हो पर उन्होंने लाखों लोगों का दिल जीत लिया है। खेल के दौरान शीतल के एक-एक शॉट पर ऑडियंस का रिएक्शन देखने लायक था। अलग-अलग देशों से आए दर्शक पूरे खेल में उन्हें चियर कर रहे थे। शीतल देवी का ओलंपिक्स का प्रदर्शन लाखों लोगों के लिए मोटिवेशन का कम कर रहा है। आइए जानते हैं, शीतल बिना हाथों के कैसे बनीं बेहतरीन निशानेबाज।

जन्म से है फोकोमेलिया

शीतल देवी का जन्म जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के गांव लोई धार में हुआ था। 17 साल की शीतल देवी को जन्म से ही फोकोमेलिया नाम की बीमारी थी। यह एक ऐसी बीमारी होती है जिसमें प्रेग्नेंसी में ही बच्चे के अंग ठीक तरह से डेवलप नहीं हो पाते हैं। इस बीमारी की वजह से जन्म से ही शीतल के दोनों हाथ नहीं है। लेकिन उनके शरीर का बाकी हिस्सा इतना मजबूत है कि बचपन में बिना हाथों के ही पेड़ों पर चढ़ जाया करती थी।

कैसे बनीं तीरंदाज?

शीतल के हुनर को सेना के एक अधिकारी ने पहचाना। उन्होंने कटरा के माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान से शीतल के बारे में बात की। शीतल की शारीरिक क्षमता को देखते हुए उसके लिए  खास तरह का धनुष बनवाया गया, जिसे पैर और चेस्ट के सहारे चलाया जाता है। 6 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद शीतल दुनिया की पहली बिना हाथों वाली तीरंदाज बन गईं।

फिजिकल टेस्ट के बाद हुई ट्रेनिंग

सेना ने जब शीतल को एक मजबूत एथलीट बनाने की सोची तब सबसे पहला सवाल था कि शीतल की ट्रेनिंग किस खेल में की जाए। इसके लिए शीतल का फिजिकल एबिलिटी का टेस्ट कराया गया जिसमें शरीर का बाकी हिस्सा काफी मजबूत पाया गया। खासकर कमर के नीचे के हिस्से की स्ट्रेंथ काफी अच्छी थी। जिसके बाद फिजियोथैरेपिस्ट ने शीतल के लिए तीरंदाजी, स्वीमिंग और रेस में ट्रेनिंग का ऑप्शन दिया। आखिर में शीतल के लिए आर्चरी को फाइनल किया गया जो आज उनकी पहचान बन गई है।

शीतल की उपलब्धियां

शीतल दुनिया की पहली बिना हाथों वाली तीरंदाज हैं। उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। शीतल ने एशियाई पैरा टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता था। खेलो इंडिया एनटीपीसी राष्ट्रीय रैंकिंग आर्चरी कॉम्पिटिशन में में शीतल ने सामान्य और पूर्ण रूप से सक्षम खिलाड़ियों के साथ कंपीट करके सिल्वर मेडल जीता था। शीतल को पैरा आर्चरी के लिए साल 2023 का अर्जुन अवार्ड भी मिल चुका है। 2023 में ही उन्हें पैरा ओलंपिक कमेटी की तरफ से बेस्ट यूथ एथलीट ऑफ दी ईयर का खिताब भी दिया गया था।

Positive सार

शीतल देवी ने बिना हाथों के ऐसे खेल में अपनी पहचान बनाई है जो खेल हाथो का ही है। शीतल ने साबित कर दिया कि अगर कुछ कर गुजरने का जुनून मन में हो तो किसी तरह की शारीरिक कमी बाधा नहीं बन सकती। शीतल देवी हर उस इंसान को पॉसिटिव उम्मीद देती हैं जो अपनी किसी कमी की वजह से खुद को कम आंकता हो। हम कामना करते है कि शीतल देवी आगे और सफलता की ऊंचाइयों को छुए।

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Rishita Diwan

Content Writer

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