Varadvinayak Ganpati: वरदविनायक मंदिर अष्टविनायक (ashtavinayak )में चौथा स्थान रखता है। यह मंदिर महाराष्ट्र, (mahad maharashtra) रायगढ़ जिले में कोल्हापुर के छोटे से गांव महड़ में स्थित है। वरदविनायक का मतलब वर देने वाले विनायक है। मान्यता है कि वरदविनायक का नाम लेने से ही इच्छाएं पूरी होती हैं। जानते हैं क्या इस मंदिर की खासियत और वरदविनायक से जुड़ी कथा।
स्वयंभू हैं वरदवियनाक
वरदविनायक (varadvinayak)की प्रतिमा स्वयंभू है। मंदिर में गणपति जी रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजित हैं। वरदविनायक की मूर्ति पत्थर की है। सूंड की दिशा बाएं ओर है और मूर्ति पूर्व मुखी है। यहां वरदनिवायक की त्रिकाल पूजा होती है। मंदिर के गर्भ गृह में जाने की अनुमति नहीं है। वरदविनायक की मूर्ति 1690 में एक शख्स को तालाब में मिली थी। बाद में मंदिर बनवाकर इसे स्थापित कराया गया।
गुंबद पर है स्वर्ण कलश
वरदविनायक(varadvinayak) मंदिर का निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने कराया था। मंदिर पूर्व मुखी है और एक तालाब के किनारे बनाया गया है। मंदिर के चारों तरफ हाथियों की मूर्ति बनाई गई है। इस मंदिर का स्वर्ण शिखर मंदिर की खासियत है। 25 फीट गुंबद में सोने का कलश लगाया गया है।। माघी चतुर्थी में मंदिर में विशेष पूजा होती है। गणेश चतुर्थी में भी 10 दिन यहां उत्सव जैसा माहौल रहता है।( ashtavinayak darshan)
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हैं। कहते हैं जो महिला गणेश जन्मोत्सव में मिलने वाला नारियल का प्रसाद लेती है। उसे संतान के रूप में बेटा मिलता है। मंदिर के पश्चिम में स्थित तालाब से जुड़ी भी कई मान्यताएं हैं। इस तालाब में स्नान कर दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर में नंददीप नाम की अखंड ज्योति है। मान्यता है ये ज्योति 1892 से जल रही है।