Tirupati Laddoo:आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति के पास तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित है भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर। इसी मंदिर को तिरुपति बालाजी के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर भारत के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर की ख्याति भगवान विष्णु की पूजा और यहां चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के लिए भी है। विशेष रूप से लड्डू, जिसे पनयारम कहा जाता है।
मंदिर में चढ़ने वाले लड्डू का इतिहास
लड्डू का इतिहास (Tirupati Laddoo) 300 साल पुराना है। इसे खास तरीके से बनाया जाता है, जिससे यह कई दिनों तक खराब नहीं होता। तिरुपति में हर दिन लगभग आठ लाख ताजे लड्डू बनाए जाते हैं। लड्डू बनाने की प्रक्रिया में गुप्त रसोई, जिसे ‘पोटू’ कहा जाता है, जिसमें 600 से ज्यादा कारीगर पारंपरिक विधियों का पालन करते हैं। यहाँ साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है।
सुरक्षा और वितरण प्रक्रिया
लड्डू को प्रसाद के रूप में प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं को कड़ी सुरक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसमें बायोमीट्रिक पहचान और फेस रिकग्निशन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, इस लड्डू को जीआई टैग (Geographical Indication) भी हासिल है, जिसका पेटेंट सिर्फ तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ट्रस्ट के पास है।
लड्डुओं की विभिन्न श्रेणियां
तिरुपति में लड्डू कई प्रकार के होते हैं, जिनका वजन निश्चित होता है। सबसे छोटे लड्डू को प्रोक्तम कहा जाता है, जिसका वजन लगभग 40 ग्राम है और यह दर्शन करने वाले हर व्यक्ति को मुफ्त में दिया जाता है। अस्थानम लड्डू का वजन 175 ग्राम होता है और इसे त्योहारों के अवसर पर 50 रुपये में बेचा जाता है। कल्याणोत्सवम लड्डू, जो सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसका वजन लगभग 750 ग्राम है और इसकी कीमत 200 रुपये है।
खरीदारी की प्रक्रिया
लड्डू खरीदने के लिए श्रद्धालुओं को टोकन लेना होता है। दर्शन लाइन निकास बिंदु पर एक अतिरिक्त लड्डू काउंटर मौजूद है, जो सुबह 8 बजे खुलता है। किसी भी व्यक्ति को 999 लड्डू तक खरीदने की अनुमति होती है। तिरुपति मंदिर की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत लड्डू की बिक्री है, जो विशेषकर त्योहारों के दौरान बढ़ जाती है।
READ MORE GI Tag: क्या होता है GI टैग? इसके मिलने से क्या होता है फायदा?