कहते हैं कि अगर आपमें कुछ कर गुजरने का जुनून और जज्बा है, तो परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, आप अपनी मंजिल जरूर पा सकते हैं। ऐसी ही कहानी है कर्नाटक के एक छोटे से गांव के साधारण किसान परिवार में जन्मे प्रवीण की। जो कभी अपने माता-पिता के साथ खेतों में छह रुपये की दिहाड़ी पर मजदूरी किया करते थे, आज 100 करोड़ रुपये से अधिक की सोलर प्रोडक्ट्स कंपनी के मालिक हैं।
संघर्ष और मेहनत की कहानी
यह कहानी न केवल उनके संघर्ष और मेहनत की गवाही देती है, बल्कि यह भी बताती है कि अगर आपके पास एक स्पष्ट लक्ष्य, सही दिशा और अटूट विश्वास हो, तो हर बाधा को पार कर सफलता की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। प्रवीण ने अपनी सौर ऊर्जा उत्पाद कंपनी ‘स्वदेशी ग्रुप’ की शुरुआत केवल 1,800 रुपये से की थी। लेकिन आज यह कंपनी नवीकरणीय ऊर्जा और घरेलू उपयोग के सोलर उत्पादों के क्षेत्र में शीर्ष कंपनियों में गिनी जाती है।
छह रुपये में करते थे मजदूरी
प्रवीण का जन्म कर्नाटक के दावणगेरे जिले के देवारा होन्नली गांव में हुआ था। एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रवीण के लिए बचपन से ही सुविधाओं का अभाव था। आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि उन्हें अपने माता-पिता के साथ खेतों में मजदूरी करनी पड़ती थी, जिसके बदले उन्हें मात्र छह रुपये प्रति दिन की दिहाड़ी मिलती थी।
गांव में नहीं था स्कूल
प्रवीण के गांव में 8वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई का कोई प्रबंध नहीं था। लेकिन पढ़ाई की ओर उनका रुझान और आगे बढ़ने की चाह ने उन्हें गांव से सात किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया। अपने गांव में 10वीं कक्षा पास करने वाले पहले व्यक्ति बनने का गौरव प्रवीण ने हासिल किया। यह उपलब्धि न केवल प्रवीण के लिए, बल्कि उनके पूरे गांव के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।
दिहाड़ी मजदूरी और सेल्समैन की नौकरी
प्रवीण की 10वीं पास करने की उपलब्धि के बाद उनका परिवार बेहतर जीवन की तलाश में दावणगेरे शहर आ गया। यहां से उन्होंने 12वीं और स्नातक की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने फार्मेसी स्टोर में 600 रुपये प्रति माह की नौकरी की।
पारले से शुरू की नौकरी
ग्रेजुएशन के बाद 2006 में उनका व्यावसायिक करियर पारले कंपनी में नौकरी के साथ शुरू हुआ। उन्होंने कोका-कोला, विप्रो और ओयो जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में बतौर सेल्समैन 15 साल तक काम किया। ओयो में काम करते हुए, वह इसके संस्थापक रितेश अग्रवाल की सोच और उद्यमशीलता से बेहद प्रभावित हुए। यहीं से प्रवीण ने पहली बार सोचा कि वह भी खुद का कोई स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं।
कोविड महामारी में की नई शुरूआत
कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवीण की नौकरी चली गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस कठिन समय ने उन्हें एक नया दृष्टिकोण दिया। प्रवीण ने अपनी पत्नी चिन्मयी की मदद से सोलर प्रोडक्ट्स बेचने का विचार किया। शुरुआत में, उन्होंने निर्माता से उधार पर सोलर वॉटर हीटर खरीदे और उन्हें बेचकर उधार चुकाते रहे। ग्राहकों की मांग के अनुसार, उन्होंने धीरे-धीरे अन्य घरेलू उपकरण जैसे वाटर प्यूरीफायर, गीजर आदि भी बेचना शुरू कर दिया।
1,800 रुपये से शुरू की ‘स्वदेशी’ सोलर कंपनी
2020 की शुरुआत में, प्रवीण ने मैसूर में ‘स्वदेशी ग्रुप’ के नाम से अपनी कंपनी पंजीकृत कराई। उनके पास केवल 1,800 रुपये थे, जिससे उन्होंने अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया। उनके बिजनेस आइडिया से प्रभावित होकर, उनके निर्माता ने उन्हें दस लाख रुपये का निवेश दिया। इन पैसों की मदद से प्रवीण ने अपना पहला शोरूम खोला और सौर ऊर्जा से चलने वाले उत्पादों की बिक्री शुरू की।
आज उनकी कंपनी सोलर वॉटर हीटर, इनवर्टर, बैटरी, वाटर प्यूरीफायर, ऑटोमैटिक वाटर लेवल कंट्रोलर, एयर हीट पंप और अन्य सौर ऊर्जा से संचालित उपकरणों का सफलतापूर्वक निर्माण और बिक्री कर रही है। उनकी कंपनी अब एक प्रतिष्ठित सौर ऊर्जा उत्पाद कंपनी बन चुकी है, जो बहुत से लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रही है।
युवाओं के लिए प्रवीण की सीख
प्रवीण की सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, अगर आपके पास हौसला और जुनून है, तो आप कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं। प्रवीण कहते हैं, “अवसर खुद-ब-खुद नहीं मिलते, उन्हें बनाना पड़ता है। कठिनाइयों और चुनौतियों के बीच ही अवसर छिपे होते हैं। अपने पास मौजूद साधनों से जो भी संभव हो, वह करना चाहिए। अगर आप सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं, तो सफलता आपके कदम चूमेगी।”
प्रवीण की कहानी केवल एक व्यक्ति की सफलता की नहीं, बल्कि आत्म-निर्भरता, संकल्प, और दृढ़ता की एक जीती-जागती मिसाल है। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि सच्ची सफलता संघर्ष की राह से ही होकर गुजरती है।