Rangoli: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। भारत के हर कोने में अलग धर्म, जाती और समुदाय के लोग रहते हैं। यहां पूरे साल अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। विविधताओं से भरे देश में कदम-कदम पर रीति-रिवाज और संस्कृति बदलती रहती है। लेकिन एक डोर होती है जो सबको एक तार में बांधे रखती है। (Rangoli)रंगोली भारत की एक ऐसी ही कला या परंपरा है। जिसे हर राज्य में बनाया जाता है लेकिन अलग-अलग नामों से । आइए जानते हैं भारत के राज्यों की रंगोली एक दूसरे से कितनी अलग है।
चौक पूरना – छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में रंगोली (Rangoli)को चौक पूरना कहते हैं। यहां की रंगोली चावल के आटे से बनाई जाती है। आज भी गांवों में सुबह सबसे पहले दरवाजे पर चौक पूरा जाता है। इसके लिए अलग-अलग आकृतियों के सांचे होते हैं, जिन्हें ठप्पा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में पूजा करने से पहले पूजा स्थल पर सफेद चावल के आटे से चौक पूरना जरूरी परंपरा है ।
अरिपन रंगोली – बिहार
अरिपन बिहार की लोक चित्र कला है। इसे आंगन में बनाया जाता है। (aripan rangoli) अरिपन मिथिला कला का एक प्रकार है, जो खास तरह से मधुबनी गांव में प्रसिद्ध है। उत्सवों के दौरान, महिलाएं आंगन और दीवारों पर चित्र बनाती हैं। इसे बनाने के लिए पहले भिगोए हुए चावल को पीसकर पानी मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है, जिसे ‘पिठार’ कहते हैं। फिर आंगन को गोबर से लीपा जाता है और महिलाएं अपनी उंगली से चित्र बनाती हैं। हर उत्सव के लिए अलग-अलग अरिपन बनाए जाते हैं।
मांडना रंगोली –राजस्थान
राजस्थान की रंगोली को मांडना कहते है। इसे त्योहारों पर महिलाएं जमीन और दीवारों पर बनाती हैं। (mandana)मांडना की आकृतियां ज्यामितीय और पुष्प आकृतियों में होती हैं। पुष्प आकृतियां सामाजिक और धार्मिक विश्वासों से जुड़ी होती हैं, जबकि ज्यामितीय आकृतियां तंत्र-मंत्र से जुड़ी होती हैं। इसे बनाने में चाक और चूना के पेस्ट का उपयोग किया जाता है।
अल्पना रंगोली – बंगाल
अल्पना रंगोली (rangoli) बंगाल में प्रचलित है। इसे आमतौर पर महिलाएं बनाती हैं। अल्पना डिजाइन धार्मिक और समाजिक दोनों कार्यक्रमों में बनाई जाती है। इसे आमतौर पर जमीन पर बनाया जाता है। व्रत त्योहारों में पूरे घर को अल्पना से सजा दिया जाता है। अल्पना को चावल पाउडर, पतला चावल का पेस्ट, और रंगीन पाउडर का उपयोग करके बनाया जाता है।
ऐपण रंगोली – उत्तराखंड
ऐपण (epan) कुमाऊं में प्रचलित एक पारंपरिक रंगोली है। इसे पूजा स्थानों और घरों के दरवाजे को सजाने के लिए बनाया जात है। ऐपण कला का महत्व सामाजिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक है। इसके डिजाइन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होते हैं।
झोटी और चिता रंगोली – उड़ीसा
झोटी या चिता उड़िया कला है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय है। इसमें आमतौर पर सफेद रंग, चावल, या चावल के आटे के पेस्ट का उपयोग होता है। इसे भी उंगलियों को चावल के पेस्ट में डूबाकर उकेरा जाता है।
कोलम रंगोली – केरल
केरल में रंगोली को कोलम कहा जाता है। यह शुभ अवसरों पर बनाई जाती है। कोलम बनाने के लिए सूखे चावल के आटे का उपयोग होता है। कभी-कभी इसमें फूलों का उपयोग भी किया जाता है, जिसे “पुकोलम” कहते हैं। ओणम पर्व के दौरान हर घर और मंदिरों में फूलों से बड़े-बड़े और सुंदर कोलम बनाया जाता है।
मुग्गु रंगोली – आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में रंगोली को मुग्गु (muggu)कहते हैं। इसे बनाने के लिए महिलाएं गोबर से जमीन को लीपती हैं। यहां पर रंगोली का डिजाइन चाक और कैल्शियम के पाउडर का उपयोग करके बनाया जाता है। मुग्गु विशेष रूप से त्योहारों के दौरान घर के हर कोने में बनाया जाता है। यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती है।
चावल के आटे का महत्व
हमने देखा कि ज्यादातर पारंपरिक रंगोली (rangoli) को बनाने में चावल के आटे का उपयोग किया जाता है। इसके पीछे भी एक अच्छा उद्देश्य छिपा होत है। चावल के आटे से बनी रंगोली चीटियों, पक्षियों और कीड़ों के लिए दाने के रूप में काम आती है। पहले के समय में रंगोली बनने के कुछ देर के बाद ही पक्षी या चीटियां आकर आटे को खाने लगती थी।