Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन का त्योहार यानी ऐसा बंधन जो रक्षा से जुड़ा है। बहन भाई को राखी बांधती है और भाई रक्षा करने का वचन देता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि भाई और बहन के इस मजबूत रिश्ते की डोर का प्रतीक रेशम से क्यों बंधा होता है। रेशम की डोर तो नाजुकता को दर्शाता है। लेकिन भारतीय परंपराओं और रिवाजों में कोई भी रस्म यूं ही नहीं होती। हर परंपरा अपने पीछे गहरा अर्थ लिए होती है। रेशम की डोर के पीछे भी ऐसा ही कुछ सार छुपा हुआ है जो हम आपको बताने जा रहे हैं।
रेशम का महत्व
राखी की डोर तैयार करने के लिए और भी बहुत से विकल्प मौजूद है जो रेशम से भी मजबूत होते हैं और बाजार में उपलब्ध भी हैं। लेकिन रेशम को चुनने का खास कारण है, दरअसल रेशम एक ऐसा धागा होता है जिसकी मजबूती समय के साथ आती है, जितना पुराना रेशम उतनी ही ज्यादा उसकी मजबूती। इतना ही नहीं रेशम जितना पुराना होता है उसकी चमक उतनी ही बढ़ती जाती है। जबकी दूसरा कोई भी धागा हो समय के साथ उसकी चमक भी चली जाती है और उपयोग के साथ उसकी मजबूती भी खत्म हो जाती है। रेशम की डोर के जरिए ही भाई-बहन यह कामना करते हैं कि उनका रिश्ता भी रेशम की तरह समय के साथ और मजबूत हो साथ ही उसकी चमक और बढ़े।
धर्म में भी रेशम का महत्व
सनातन धर्म और आध्यात्म का गहराई से अध्ययन करने पर जानकारी मिलती है कि यह पूरा संसार तीन गुणों पर चलता है, वो हैं रज, तम और सत। सतगुण जीवन में ठहराव और हल्कापन लाता है। धर्म के अनुसार जब रेशम की डोर को अक्षत या चावल के साथ गांठ बनाकर भाई की कलाई में बांधने से सतगुण यानी सात्विक उर्जा भाई के शरीर में दौड़ने लगती है। रेशम और चावल दोनों प्रकृति का अंश हैं इनसे सत गुण तो आता ही है यह शरीर में तम और रज गुणों के प्रभाव को कम करते हैं।
Positive सार
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार है। इस रिश्ते को रेशम की डोर से और मजबूती मिलती है। इस त्योहार का महत्व धर्म और इतिहास में भी देखने को मिलता है। रेशम को तो शुभ माना ही गया है लेकिन डोर चाहे रेशम की हो या किसी और धागे की। भाई-बहन के रिश्ते की खूबसूरती हमेशा बनी ही रहती है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि रेशम की डोर ना हो तो दूसरी डोरी भाई के लिए शुभकारी नहीं होगी। सकारात्म भावनाओं के साथ बांधी गई हर डोर भाई के जीवन में खुशियां ही लेकर आएगी।

