Rakahsa bandhan: रक्षाबंधन हिंदू धर्म का बड़ा ही पवित्र त्यौहार माना जाता है। हम अपने छोटे और बड़े भाइयो को राखी बांधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है ये परंपरा कब से शुरु हुई होगी। हिंदू धर्म पुराणों और भारतीय इतिहास में रक्षाबंधन से जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं। जिन्हें जानने के बाद पता चलता है कि रक्षाबंधन का त्योहार क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
रक्षाबंधन और श्री कृष्ण की कथा
रक्षाबंधन का त्यौहार हर साल सावन के महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है जिसके अनुसार जब श्री कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तब उनकी एक ऊंगली चोटिल हो गई थी। जिससे तेजी से खून बहने लगा। ये देखकर वहां खड़ी द्रौपदी ने अपने आंचल का हिस्सा फाड़कर तुरंत श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया। द्रौपदी के इस प्रेम को देखकर भगवान कृष्ण ने उसी दिन उन्हें अपनी बहन माना। कृष्ण ने द्रौपदी को हर स्थिति में उनकी रक्षा करने का वचन दिया। ये घटना जिस दिन हुई उस दिन सावन की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से हर साल इस दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की परंपरा शुरु हुई।
मां लक्ष्मी ने बली को बांधी राखी
रक्षाबंधन से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार जब वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बली से 3 पग जमीन मांग कर पहले और दूसरे पग में पृथ्वी और आकाश लोक को नाप लिया था। तब तीसरा पग राजा बली ने अपने सर पर रखने का आग्रह किया। राजा बलि की अपने वचन के प्रति निष्ठा देखकर भगवान विष्णु खुश हो गए थे। राजा बली के निवेदन करने पर वो उनके साथ पाताल लोक में बस गए थे। इधर विष्णु जी के पाताल चले जाने से माता लक्ष्मी परेशान हो गईं और एक ब्राह्मणी के रूप में राजा बली के पास पहुंची। सावन की पूर्णिमा आने पर माता लक्ष्मि ने राजा बली को भाई मानकर उन्हें राखी बांधी और बदले में भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन भी मांगा। राजा बली माता लक्ष्मी को बहन मान चुके थे इलिए उन्होंने वचन निभाया और भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कर दिया।
संतोषी बनी शुभ-लाभ की बहन
भगवान गणेश के पुत्र शुभ और लाभ रक्षाबंधन पर बहन नहीं होने से काफी उदास थे। वो भगवान गणेश से एक बहन लाने की जिद कर रहे थे। तभी वहां देवऋषी नारद आए और भगवान गणेश को पुत्री प्राप्ति का आर्शीवाद दिया। उनके आशीर्वाद से रिद्दी और सिद्धी के शरीर से दो ज्वालाएं निकली और उससे मां संतोषी का जन्म हुआ। तब से माता संतोषी शुभ और लाभ की कलाई पर भी राखी बंधने लगी। मां संतोषी के जन्म के दिन सावन माह की पूर्णिमा तिथी थी। इसलिए कई जगहों पर इस दिन संतोषी मां की भी पूजा की जाती है।
यम और यमुना की कहानी
क्या आपको पता है मृत्यु के देवता यम और यमुना भाई बहन हैं। कहा जाता है दोनों ने कई सालों तक एक दूसरे से मुलाकात नहीं की थी। इस बात से यमुना बहुत दुखी हो जाती है और देवी गंगा के पास जाती है और अपना दुख बांटती है। इस पर गंगा यम को उसकी बहन यमुना की याद दिलाती है और उनसे मिलने को कहती है। यम देव सावन की पूर्मिमा के दिन बहन से मिलने जात हैं। यम के आने की खुशी में यमुना कई प्रकार के पकवान बनाती है और यम की कलाई पर राखी बांधती है। यम खुश होकर यमुना को अमरत्व का वरदान देते हैं। यम देवता कहते हैं इस दिन जो भी भाई अपनी बहन से राखी बंधवाएगा उसे दिर्घायु होने का आशीर्वाद मिलेगा।
कर्णावती और हुमायूं की कहानी
राणा सांगा के निधन के बाद चित्तौड़ का राज्य उनकी रानी कर्णावती संभाल रही थी। क्योंकी चित्तौड़ के उत्तराधिकारी राणा विक्रमादित्य की उम्र बहुत कम थी। एक बार गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। चित्तौड़ की रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक राखी के साथ मदद का संदेश भेजा। हुमायूं मुगल होने के बाद भी राखी का महत्व जानता था। उसने राखी स्वीकार की और दूसरे युद्द में निकली अपनी सेना को चित्तौड़ की ओर रवाना कर दिया। हुमायूं की सेना के पहुंचने से पहले ही बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया था और रानी कर्णावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए कई महिलाओं के साथ जौहर ले लिया था। इसके बाद भी हुमायूं ने भाई होने का कर्तव्य निभाया और बहादुर शाह से युद्ध किया। उसने चित्तौड़ पर जीत हासिल की और उसे राणा सांगा के पुत्र राणा विक्रमादित्य को सौंप दिया।
राखी ने बचाई थी सिकंदर की जान
कहा जाता है कि जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था तब उसका सामना भारत के वीर योद्धा पौरस से होने वाला था। सिकंदर की पत्नी रोक्साना यह जानती थी कि सिकंदर पौरस के सामने नहीं टिक पाएगा। तब उसने राजा पौरस को राखी भेजी और बदले में अपने पति की रक्षा का वचन मांगा। ऐसा कहा जाता है कि राजा पौरस ने सिकंदर को नहीं मारा और भाई होने के वचन को निभाया। सिकंदर ने भी अपनी पत्नी के द्वारा भेजी गई राखी पौरस की कलाई पर देखी और उन्हे नहीं मारा साथ ही जीते गए राज्य भी लौटा दिए।