आज महाकुम्भ का पहला दिन और संगम पर लाखों लोगो ने स्नान किया। प्रयागराज में महाकुम्भ के पहले ही दिन 60 लाख श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगा चुके हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। पौष पूर्णिमा की रात से ही पवित्र डुबकी का शुभारंभ हुआ, जो महाकुंभ के महत्व को और भी गहरा करता है।
यह मेला महापर्व 26 फरवरी तक चलेगा। इस बार 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना जताई जा रही है, जो महाकुंभ की महत्ता और आकर्षण को दर्शाता है।
इस धार्मिक पर्व का आयोजन न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी समर्पित एक महाकुंभ है, जो सभी श्रद्धालुओं के बीच एकता और अखंडता का संदेश फैलाता है।
कल्पवास शुरू
संगम की रेती पर जप, तप और ध्यान की वेदियां सज गई हैं, जहां श्रद्धालु अपने आध्यात्मिक अनुभवों में लीन हो रहे हैं। साथ ही, मास पर्यंत यज्ञ-अनुष्ठान और कल्पवास भी शुरू हो गए हैं। कल्पवास का अर्थ है, श्रद्धालु पूरे एक महीने तक विशेष धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए, संयमित जीवन जीते हैं और ध्यान-धारणा में लीन रहते हैं। यह एक प्रकार से जीवन के शुद्धिकरण और आत्मा के शुद्धि का प्रतीक है।
इस विशाल आयोजन में श्रद्धालुओं की आस्था और समर्पण को देखा जा सकता है, जो महाकुंभ को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव बनाता है।
विदेशियों का जमावड़ा
- इस बार महाकुंभ में 183 देशों के लोगों के आने की उम्मीद है।
- महाकुंभ के इस भव्य और दिव्य आयोजन में एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी, लॉरेन पॉवेल जॉब्स पहले दिन पहुची है। वे स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज के आश्रम में पहुंची हैं।
कुम्भ का पौराणिक महत्त्व
समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश के लिए संघर्ष हुआ, तब भगवान विष्णु ने अपने मोहिनी रूप में आकर असुरों से अमृत बचाया और वह अमृत कलश अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। जब असुरों ने गरुड़ से अमृत कलश छीनने का प्रयास किया, तब अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गईं। यह घटनाएँ धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं और इन स्थानों पर महाकुंभ मेला आयोजित होने की परंपरा की नींव रखी गई।
महाकुंभ मेला उन अमृत की बूंदों के पवित्र गिरने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जहाँ श्रद्धालु नदियों में डुबकी लगाकर अपनी आत्मा की शुद्धि और मुक्ति की कामना करते हैं। हर 12 साल बाद इन चार पवित्र स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है, जो हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण और आस्था का प्रतीक है। इस मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु आते हैं और अपना जीवन सुधरने, पवित्रता और आस्था को पुनः प्राप्त करने के लिए संगम में स्नान करते हैं।
महाकुंभ में शाही स्नान कब?
- मकर संक्रांति – 14 जनवरी 2025
- मौनी अमावस्या – 29 जनवरी 2025
- बसंत पंचमी – 03 फरवरी 2025
- माघी पूर्णिमा – 12 फरवरी 2025
- महाशिवरात्रि – 26 फरवरी 2025
Positive सार
महाकुंभ केवल भारत के श्रद्धालुओं के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए एक रिलीजियस और स्पिरिचुअल सेंटर बन चुका है। महाकुंभ में शामिल होने से न केवल धार्मिक आस्था का जुड़ाव होता है, बल्कि यह इनर हैप्पीनेस और मेन्टल पीस की ओर एक कदम और बढ़ने का अवसर भी प्रदान करता है।