Maha Kumbh 2025: जनवरी में संगम नगरी में कुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है। कुंभ सनातन धर्म के सबसे बड़े आयोजनों में से एक होता है। (Maha Kumbh 2025) महाकुंभ हर 12 साल में एक बार होता है। यह आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। आइए जानते हैं कुंभ से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां।
महाकुंभ 2025 स्नान की तारीखें
2025 में महाकुंभ (Maha Kumbh 2025)का स्नान 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से शुरू होगा। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर पहला शाही स्नान होगा। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान होगा। 3 फरवरी को वसंत पंचमी का आखिरी शाही स्नान होगा। इसके बाद 4 फरवरी को अचला सप्तमी, 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 26 फरवरी महाशिवरात्री पर आखिरी स्नान का पर्व होगा। इस तरह से महाकुंभ पूरे 45 दिनों तक चलेगा। इसमें तीन शाही स्नान 21 दिनों में पूरे होंगे।
कुंभ मेलों के प्रकार
महाकुंभ मेला: इस मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है। यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेला होने के बाद आता है।
पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है। इसे भारत में 4 जगह यानी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है। 12 साल के अंतराल में इन 4 कुंभ में इस मेले का आयोजन बारी-बारी से होता है।
अर्ध कुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो कि हर 6 साल में दो स्थानों हरिद्वार और प्रयागराज में होता है।
कुंभ मेला: इस मेले का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर हर तीन साल में आयोजित किया जाता है.
माघ कुंभ मेला: माघ कुंभ मेला हर साल माघ के महीने में प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
कैसे निर्धारित होती है कुंभ मेले की तिथि
कब और किस स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा इसकी तिथि ग्रहों और राशियों पर निर्भर करती है। कुंभ मेले में सूर्य और बृहस्पति को महत्वपूर्ण माना जाता है। जब सूर्य और बृहस्पति ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसी तरह से स्थान भी निर्धारित किए जाते हैं।
जब बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में होते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।
सूर्य जब मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में होता है।
सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ मेला नासिक में होता है।
जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ का आयोजन उज्जैन में किया जाता है।
कुंभ के लिए महत्वपूर्ण हैं ये ग्रह
सभी नवग्रहों में कुंभ के लिए विशेषकर सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. कहा जाता है कि, अमृत कलश के लिए जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ तो कलश की खींचातानी में चंद्रमा ने अमृत को गिरने से बचाया, गुरु ने अमृत कलश को छिपाया, सूर्य ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से कलश की रक्षा की.
12 साल में क्यों होता है कुंभ ?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और देवतागण कमजोर पड़ गए तब असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करके अमृत निकालने को कहा। इसके बाद देवता और असुरों ने अमृत निकालने का प्रयास किया और समुद्र से अमृत कलश भी निकला। देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत कलश को लेकर उड़ गया। तब असुरों ने जयंत का पीछा किया और जयंत को पकड़ लिया। इसके बाद असुर अमृत कलश पर अधिकार जमाने लगे।
अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला रहा। इस दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदे प्रथ्वी के चार स्थानों पर गिर गई। पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन और चौथी बूंद नासिक में गिरी। इसीलिए इन चार स्थानों को पवित्र माना जाता है और कुंभ मेले का आयोजन इन्हीं स्थान पर किया जाता है। अमृत कलश के लिए 12 दिनों तक देवताओं ने युद्ध किया था। देवताओं के यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं। यही कारण है कि हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है।