Chhattisgarh culture: शिव-पार्वती विवाह का उत्सव, गौरा-गौरी पूजा

Chhattisgarhi culture: छत्तीसगढ़ को आदिवासियों की धरती कहा जाता है। आदिवासी, जो यहां के मूल निवासी माने जाते हैं ऐसे तो पिछड़े कहलाते हैं, लेकिन अगर हम इनकी (Chhattisgarhi culture)संस्कृति और त्योहारों को करीब से देखें तो इनकी समृद्धी का अंदाजा लगा सकते हैं। इनका त्योहार मनाने का भी अपना तरीका होता है। अपने रीति रिवाजों और परंपराओं से ये जड़ से जुड़े होते हैं। आइए जानते ने इनके एक प्रमुख त्योहार गौरा-गौरी पूजा के बारे में जिसे दीपावली के ठीक दूसरे दिन मनाया जाता है।

क्या है गौरा-गौरी पूजा?

गौरा-गौरी पूजा जिसे स्थानीय लोग गऊरा-गउरी कहते हैं मां पार्वती और शिव जी की पूजा है। इस त्योहार को (gond tribe)गोंड समाज के लोग दीपावली के दूसरे दिन मनाते हैं। गांवों में और आदिवासी इलाकों में लक्ष्मी पूजा से ज्यादा गौरा-गौरी पूजा को महत्व दिया जाता है। गौरा-गौरी पूजा में दीपावली की रात शिव और पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है। इनमें गौरा यानी शिवजी को नंदी पर और गौरी यानी माता पार्वती को कछुए पर बैठाया जाता है। गौरा-गौरी का अच्छी तरह से श्रृंगार भी किया जाता है।

शिव-पार्वती की होती है शादी

गौरा-गौरी को अलग-अलग लकड़ी के पाटे पर मंडप बनाकर बैठाया जाता है। सबसे पहले गांव के बैगा दोनों की पूजा करते हैं। गौरा-गौरी पूजा एक तरह से शिव-पार्वती की शादी का उत्सव होता है। गांव में एक तय स्थान होता है जिसे गौरा-गौरी चौरा कहते हैं। इसी जगह पर हर बार गौरा-गौरी की पूजा होती है। बैगा के पूजा कर लेने के बाद पूरे गांव वाले पूजा करते हैं। (Chhattisgarhi culture)गौरा-गौरी में गोंड समाज की काफी आस्था होती है।

पूरे गांव में घूमते हैं गौरा-गौरी

गौरा-गौरी चौरा पर पूजा होने के बाद गौरा और गौरी को अपने सर पर रखकर गांव में घुमाया जाता है। इस दौरान गांव की महिलाएं पारंपरिक गौरा-गौरी गीत गाती हैं। गौरा-गौरी की यात्रा जिस-जिस घर से गुजरती है वहां के लोग इनकी पूजा करते हैं। पूरे गांव में घूमने के बाद आखिर में गौरा-गौरी को तालाब या नदी ले जाया जाता है वहां एक बार फिर गौरा गौरी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है।

अलग-अलग क्षेत्रों में बदलती है कुछ परंपरा

गौरा-गौरी पूजा गोंड समाज (gond tribe)का त्योहार होता है।( Chhattisgarhi culture) छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में गौरा-गौरी पूजा होती है। क्षेत्र के हिसाब से परंपराओं में कुछ बदलाव हो जाते हैं। कुछ जगहों में गौरा-गौरी की पूजा सूर्योदय से पहले ही पूरी कर ली जाती है। वहीं कुछ जगहों में ये पूजा शाम को होती है। किसी इलाके में गौरा-गौरी को सिर्फ कुंवारे लड़के और लड़कियां ही सर पर रखती हैं। लेकिन कुछ गांवों में कुंवारे लड़के-लड़कियों  की परंपरा नहीं है।

कुछ (gond tribe)आदिवासी बाहुल्य इलाकों जैसे सरगुजा- बस्तर में गौरा-गौरी पूजा के मौके पर गांव में मेले जैसा माहौल रहता है। मेले में महिला और पुरुषों का ग्रुप फोक डांस करता है। गौरा-गौरी गीत और नृत्य एक स्वर और ताल में होते हैं कि इन्हें देखने और सुनने वाले भी इनमें खो जाते हैं।

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Rishita Diwan

Content Writer

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