Chhath Pooja: छठ पर्व उत्तर भारत में सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और रांची में छठ धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत किया जाता है। नहाय-खाय के साथ शुरु होकर यह व्रत 4 दिनों तक चलता है। चार दिनों में खरना, संध्या अर्घ्य, प्रभात अर्घ्य के विधान निभाए जाते हैं। कहा जाता है इस व्रत को माता सीता और द्रौपदी ने भी रखा था। आइए जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी कुछ कथाएं और तथ्य।
कौन हैं छठी माता?
छठ में सूर्य देवता और छठी माता की पूजा की जाती है, और अर्घ्य दिया जाता है। छठी मैया सूर्य देव की दो पत्नियां हैं। इन पत्नियों का नाम उषा और प्रत्यूषा है। इन्हे हीं संज्ञा और संध्या भी कहते हैं। उषा सूर्य की पहली किरण होती है और प्रत्यूषा सूर्य की आखिरी किरण। इसलिए छठ में उगते सूरज और ढलते सूरज दोनों को अर्घ्य दिया जाता है। छठी मैया को खास बच्चों पर कृपा बनाने वाली माताएं माना जाता है।
माता सीता ने की थी छठ पूजा
कहा जाता है सबसे पहले छठ की पूजा श्री राम और माता सीता ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण वध के बाद जब श्री राम अयोध्या लौटे तब उन्होंने कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत और पूजा की थी। तभी से छठ पूजा की परंपरा शुरु हुई।
छठ से जुड़ी दूसरी कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत को पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करने का सुझाव दिया। यज्ञ की आहुति के लिए बनी खीर खाने के बाद रानी मालिनी ने पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह पुत्र मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियव्रत बेटे का शव लेकर श्मशान घाट पहुंचे और दुखी होकर प्राण त्यागने का मन बना लिया। तब ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी वहां प्रकट हुईं। देवी ने राजा से कहा, “मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। तुम मेरी पूजा करो और इसका प्रचार-प्रसार करो।”
राजा ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विधि-विधान से देवी षष्ठी का व्रत किया। देवी की कृपा से उन्हें जल्द ही एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके बाद राजा प्रियव्रत ने छठ पूजा और माता छठी की महिमा का प्रचार प्रसार किया।