Basava Raju encounter: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगलों में सुरक्षाबलों ने जो ऑपरेशन चलाया, वो नक्सल इतिहास के सबसे बड़े झटकों में से एक साबित हुआ। इस ऑपरेशन में जहां एक तरफ 30 नक्सली मारे गए, वहीं दूसरी ओर टॉप कमांडर बसवा राजू को भी ढेर कर दिया गया।
बसवा पर 1 करोड़ का इनाम था। वह न केवल नक्सली नेटवर्क की रीढ़ था, बल्कि बस्तर में गुरिल्ला वॉर की तकनीक और ट्रेनिंग का मास्टरमाइंड भी।
इंजीनियरिंग से आतंक की ओर
बसवा राजू का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में हुआ था। पिता टीचर थे और उसने खुद इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। लेकिन कॉलेज के दिनों में वह रेडिकल विचारधारा की ओर झुक गया।
1980 में एक स्टूडेंट झड़प में उसकी गिरफ्तारी हुई और यही उसकी जिंदगी की दिशा बदलने वाला मोड़ था। जेल से बाहर आने के बाद वो पूरी तरह अंडरग्राउंड हो गया और नक्सल मूवमेंट में गहराई से जुड़ गया।
गुरिल्ला वॉर का मास्टर
1987 में उसने श्रीलंका के LTTई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से बाकायदा ट्रेनिंग ली। यहीं से उसने विस्फोटक बनाना, IED प्लांट करना और जंगल में छिपकर हमला करना सीखा।
बसवा ने बस्तर के लोकल युवाओं को भी ट्रेनिंग दी और नक्सलियों की एक मिलिट्री आर्मी जैसी यूनिट तैयार की। बस्तर को नक्सलियों का मजबूत गढ़ बनाने में उसका बहुत बड़ा हाथ था।
लोकेशन बदलता रहा, लेकिन नहीं बच सका
सूत्रों के मुताबिक, एक महीने से सुरक्षा बलों की नजर बसवा पर थी। वो हर दो दिन में अपनी लोकेशन बदल रहा था। लेकिन जवानों की प्लानिंग इतनी सटीक थी कि आखिरकार उसे घेर ही लिया गया। नारायणपुर जिले में हुई इस भीषण मुठभेड़ में बसवा के साथ-साथ 29 और नक्सली भी मारे गए।
गणपति की वापसी की चर्चा क्यों?
बसवा राजू की मौत के बाद अब चर्चा इस बात की है कि क्या नक्सल मूवमेंट के पुराने जनरल सेक्रेटरी गणपति की वापसी हो सकती है?
गणपति, जो अब लंबे समय से सीन से गायब था, क्या फिर से एक्टिव होगा और बस्तर में लीडरशिप लेगा? विशेषज्ञों की मानें तो फिलहाल नक्सल संगठन में नेतृत्व को लेकर खालीपन है, ऐसे में गणपति की वापसी की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
दो जवानों की शहादत
इस ऑपरेशन में जहां सुरक्षाबलों ने बड़ी सफलता पाई, वहीं दो बहादुर जवान भी शहीद हो गए। बीजापुर डीआरजी के जवान रमेश हैमला IED ब्लास्ट में शहीद हुए, जबकि नारायणपुर डीआरजी के खोटलू राम मुठभेड़ के दौरान गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
नक्सल आतंक अंत की ओर
इस ऑपरेशन में मारा गया दूसरा बड़ा नाम था, यासन्ना उर्फ जंगू नवीन। असल नाम सज्जा वेंकट नागेश्वर राव, 60 वर्षीय यसन्ना दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सीनियर कैडर था। उस पर 25 लाख का इनाम था और वह साउथ जोनल कमेटी में एक अहम रोल निभा रहा था।
शांति की ओर बस्तर
बसवा और यसन्ना जैसे बड़े कमांडरों के मारे जाने के बाद सवाल उठता है कि क्या अब बस्तर में नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह नक्सल नेटवर्क के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं। हालांकि, अब सुरक्षा बलों को मोमेंटम मिला है, जिसे जारी रखते हुए बस्तर में स्थायी शांति की कोशिश की जा सकती है।