Ashtavinayak: अष्टविनायक दर्शन में तीसरा स्थान आता है बल्लालेश्वर विनायक(ballaleshwar vinayak) मंदिर का। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के पाली गांव में स्थित है। (ashtavinayak) अष्टविनायक शक्तिपीठों में यह मंदिर विशेष महत्व रखता है। जानते हैं गणेश जी के इस मंदिर की क्या है विशेषता और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं।
भक्त के नाम से एकमात्र गणपति
बल्लालेश्वर विनायक का नाम उनके एक परम भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। यह मंदिर ऐसा अकेला मंदिर है जहां भक्त के नाम पर भगवान का नाम है। यहां विराजित बल्लालेश्वर विनायक(ballaleshwar vinayak) का श्रृंगार एक साधारण इंसान के जैसे किया जाता है। मूर्ति को धोती पहनाया जाता है। इस मंदिर में भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पंचमी तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान दूर-दूर से भक्त बप्पा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
स्वयंभू हैं बल्लालेश्वर विनायक
सभी अष्टविनायक गणपति की तरह बल्लालेश्वर विनायक भी स्वयंभू हैं। यहां पर गणेश जी पत्थर के सिंहासन पर विराजति हैं। उनका मुख पूर्व दिशा की ओर है। बल्लालेश्वर गणपति की यह मूर्ति 3 फीट ऊंची है। इस मंदिर में गणेश जी का सूंड बाई तरफ मुड़ा हुआ है। गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि भी विराजित हैं। बल्लालेश्वर विनायक के नाभी और आंखों में हीरे लगे हुए हैं।
बल्लालेश्वर मंदिर की खासियत
कहा जाता है बल्लालेश्वर विनायक मंदिर पहले लकड़ी का बना हुआ था। बाद में इसे पत्थरों से बनाया गया। मंदिर के दो मंडप है। भगवान अंदर वाले मंडप में विराजित हैं। यहां शरद ऋतु के बाद सूर्य की पहली किरण सीधे गणपति के मुख पर अभिषेक करती है। मंदिर को पत्थर और लोहे से बनाया गया है। मंदिर में बेसन के मोदक का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है।
भक्त बल्लाल की कहानी
बल्लालेश्वर विनायक का नाम उनके परम भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है, पाली में कल्याण और इंदुमति नाम के सेठ और सेठानी रहते थे। उनका बेटा बल्लाल गणेश जी का भक्त था। सेठ को बेटे की भक्ती पसंद नहीं थी। क्योंकी वो व्यवसाय में ध्यान लगाने की बजाय भक्ती में ज्यादा समय लगाता था। एक दिन गुस्से में सेठ ने बल्लाल को जंगल में पेड़ से बांध दिया और उसके गणपति की मूर्ति को तोड़कर खंडित कर दिया।
कहते हैं भूखे प्यासे भक्त की मदद के लिए गणेश जी ब्राह्मण के भेष में आए और उसे बंधन से मुक्त किया। गणेश जी ने बल्लाल से वरदान मांगने को कहा। बल्ला ने गणेशजी से हमेशा के लिए उसी स्थान पर विराजित होने को कहा। गणपति जी तुरंत मूर्ति के रूप में उसी जगह बैठ गए। आज उसी मूर्ति को बल्लालेश्वर विनायक के नाम से जाना जाता है। जिस मूर्ति को सेठ ने खंडित किया था वो मूर्ति भी उसी मंदिर प्रांगण में स्थापित है जिसे ढूंडी विनायक (dhundi vinayak)के नाम से पूजा जाता है।