बस्तर केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, घने जंगलों और आदिवासी जीवनशैली के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यहां की लोक परंपराएं और सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत भी इसे खास बनाती हैं। बस्तर का गोंचा पर्व एक ऐसा ही महापर्व है, जो न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि परंपरा और लोककला का जीवंत उदाहरण भी है।
बस्तर में बस्तर दशहरा के बाद यदि किसी पर्व को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, तो वह है गोंचा पर्व। यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और स्वामी बलभद्र की रथ यात्रा के अवसर पर श्रद्धा, परंपरा और सामाजिक एकता के साथ मनाया जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गोंचा पर्व का इतिहास लगभग छह शताब्दियों पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि बस्तर के तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव ने जब जगन्नाथ पुरी की यात्रा की, तो वहां उन्हें ‘रथपति’ की उपाधि मिली और भेंट स्वरूप एक विशाल रथ प्राप्त हुआ। राजा यह रथ बस्तर लाए और इसके साथ ही जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों को भी प्रतिष्ठित किया। उसी समय से यह परंपरा बस्तर में शुरू हुई, जो आज तक पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जा रही है।
चंदन जात्रा से शुरुआत
27 दिनों तक चलने वाले गोंचा पर्व की शुरुआत चंदन जात्रा से होती है, जिसमें भगवान के विग्रहों का पवित्र जल और चंदन से अभिषेक किया जाता है। इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना होती है और मंदिर परिसर में भक्तों की बड़ी संख्या एकत्र होती है।
तुपकी चालन से रथों को सलामी
इस पर्व का सबसे अनोखा पहलू है रथ यात्रा और तुपकी चालन। बस्तर के स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए तीन विशालकाय रथों में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को विराजमान किया जाता है। रथों की परिक्रमा के दौरान, स्थानीय युवक बांस से बनी एक पारंपरिक तोप जिसे “तुपकी” कहा जाता है, से रथों को सलामी देते हैं। यह परंपरा बस्तर में ही देखने को मिलती है और देश-विदेश से लोग इस अद्भुत आयोजन को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं।
तुपकी चालन की प्रक्रिया भी रोचक है। इसमें मलकांगिनी नामक बीज को पोंगली में डालकर फोड़ा जाता है, जिससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। यह ध्वनि बस्तर की संस्कृति में एक शौर्य और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है।
धार्मिक और सामाजिक महत्व
गोंचा पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह बस्तर के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी अहम हिस्सा है। इस पर्व में रथ यात्रा, तुपकी चालन, मंडप पूजन और विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं, जो न केवल बस्तरवासियों को जोड़ती हैं, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी इस भूमि की समृद्ध विरासत से परिचित कराती हैं।
बस्तर की आत्मा का उत्सव
गोंचा पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा का उत्सव है। यह पर्व न केवल इतिहास और परंपरा को जीवंत रखता है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ता है। बस्तर की माटी में रचा-बसा यह पर्व अपने अनोखे अंदाज, श्रद्धा और लोकसंस्कृति की वजह से आज भी लाखों लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।