इस जगह पर शिव ने लिया था पुत्र गणेश से वरदान

Mahaganpati : पुणे के पास राजणगांव में स्थित है भगवान गणेश का ‘महागणपति’ स्वरूप। महागणपति के इस मंदिर में दर्शन के साथ ही अष्टविनायक (ashtavinayak) दर्शन संपन्न हो जाता है। यह मंदिर अष्टविनायक का अंतिम और आठवां मंदिर है। आइए जानते हैं महागणपति दर्शन का महत्व और इससे जुड़ी प्रचलित कथा।

मंदिर से जुड़ी कथा

त्रिपुराशुर (tripurasur) नाम के राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। लेकिन भगवान गणेश से मिले वरदान के कारण उसका अंत करना संभव नहीं था। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के अंत के लिए अपने ही पुत्र गणेश की आराधना की। भगवान गणेश ने इसी जगह पर  भगवान शिव को दर्शन दिया। उन्होंने अपने ही पिता को विजयी होने का वर दिया। इसके बाद भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर से युद्ध किया था। इस युद्ध में भगवान शिव की विजयी हुई थी।

किसने कराया मंदिर का निर्माण

इस सुंदर मंदिर का निर्माण 9वीं से 10वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर पूर्व मुखी है। मंदिर के मुख्य दरवाजे पर द्वारपाल के रूप में 2 विशाल मूर्तियां खड़ी है। मंदिर के गर्भगृह को 1790 में माधवराव पेशवा ने बनवाया था। मंदिर के अंदर एक हॉल भी है जिसका निर्माण इंदौर के सरदार किबे ने करवाया था। इस मंदिर में रविवार और बुधवार को विशेष पूजा अर्चना होती है।

सूर्य किरणों से होता है अभिषेक

यहां स्थापित महागणपति (mahaganpati)जी की मूर्ति काफी आकर्षक है। गणेश की जी का चमकदार और चौड़ा ललाट भक्तों को आकर्षित करता है। गणेश जी का सूंड दक्षिण दिशा की और मुड़ा हुआ है। मंदिर का निर्माण और मूर्ति की स्थापन इस तरह किया गया है कि जब सूर्य उत्तरायण होते हैं तब महागणपति की मूर्ति पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। यहां पर गणेश जी के साथ उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि भी विराजमान हैं।

Shubhendra Gohil

Content Writer

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