Vighneshawar ganpati: (ashtavinayak temple)अष्टविनायक के आठ गणपति मंदिरों में सातवें क्रम पर आता है विघ्नेस्वर गणपति का मंदिर। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर में स्थित है। इस मंदिर में गणेश जी की विघ्नहर्ता(vighnaharta) रुप की पूजा की जाती है। इसे विघ्नेश्वर श्री क्षेत्र ओझर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है विघ्नहर्ता के दर्शन से जीवन के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।
हीरे जवाहरात से सजे हैं गणपति
विघ्नेश्वर मंदिर(vighneshwar temple) में विराजित विघ्नहर्ता गणपति पूर्व की ओर मुख किए हुए हैं। गणेश जी का सूंड दाईं ओर मुड़ा हुआ है। भगवान की मूर्ति को कई हीरे जवाहरात से सजाया जाता है। गणपति की आंखों में रूबी रत्न जड़ा हुआ है। नाभी पर कीमती रत्न पहनाया गया है। माथे पर तिलक वाले स्थान पर भी हीरा जड़ा हुआ है।
मंदिर की विशेषता
यह मंदिर कुकड़ी नदी के किनार बना हुआ है। मंदिर को 1785 में श्रीमंत चीमाजी अप्पा के द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर पूर्व मुखी है और मंदिर के चारों ओर पत्थर की मोटी दीवार बनी हुई है। मंदिर के गुंबद में सोने का कलश लगा हुआ है। इस भव्य मंदिर को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।(ganesh utsav) गणेश उत्सव के मौके पर यहां बड़े त्योहार की तरह माहौल होता है।
कैसे पड़ा विघ्नेश्वर नाम?
विघ्नेश्वर मंदिर को लेकर एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार राजा अभिनंदन ने यज्ञ का आयोजन किया था। उन्होंने इंद्र को आमंत्रित नहीं किया था। नाराज होकर इंद्र ने विघ्नासुर नाम के राक्षस को यज्ञ भंग करने भेजा। विघ्नासुर ने यज्ञ में बाधा पहुंचाई और उत्पाद मचाया। उसने उन सभी साधुओं को परेशान किया जो धार्मिक कर्म में लगे हुए थे।
साधुओं ने भगवान गणेश के पास अर्जी लगाई। गणपति तुरंत मदद के लिए आए और विघ्नासुर का अंत किया। जिस जगह पर उन्होंने विघ्नासुर का अंत किया उसी जगह पर गणेश जी को स्थापित किया गया। विघ्नासुर को मारकर साधुओं पर आए विघ्न को दूर करने पर उन्हें ‘विघ्नेश्वर’ नाम दिया गया।