

छत्तीसगढ़ के जंगलों में वन्य प्राणियों और वन क्षेत्रों के ग्रामीणों के लिए सालभर पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। इसके लिए वन विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर वाटर हार्वेस्टिंग संरचनाएं तैयार की जा रही है। इन संरचनाओं के बनने से वन क्षेत्रों में नमी बनी रहेगी। वहीं वन्य प्राणियों के पीने के पानी की उपलब्धता भी सालभर रहेगी। इन संरचनाओं के तैयार होने से आसपास के गांव वालों को भी 12 महीने उपयोग के लिए पानी की सुविधा मिलेगी।
पशुओं के लिए काफी उपयोगी
वन विभाग ने कैम्पा मद की वार्षिक कार्ययोजना 2020-21 के भाग-2 में मिले आबंटन के तहत बीजापुर वनमण्डल के भैरमगढ़ परिक्षेत्र के पोन्दुम गांव के कर्रेपारा में मिट्टी का बांध तैयार किया है। इस बांध का निर्माण 33 लाख 67 हजार रूपए की लागत से हुआ है।
वनांचल क्षेत्रों में तैयार की जा रही भू-जल संरक्षण व संवर्धन की संरचनाएं वनों, वन्य प्राणियों, वन ग्रामों के ग्रामीणों और उनके पशुओं के लिए काफी उपयोगी हैं। इन संरचनाओं के निर्माण में आसपास के गांवों के ग्रामीणों को मजदूरी के रूप में रोजगार भी मिल रहा है। और 12 महीनों के लिए पानी की चिंता भी खत्म हो रही है।
बांधों में पाली जा रही मछलियां
बीजापुर के सुदूर ग्रामीण इलाकों में जल संरक्षण के लिए किए जा रहे ये कार्य वाकई सराहनीय हैं। इसके तहत ग्राम पोन्दुम में निर्मित कराया गया 172 मीटर लंबे मिट्टी के बांध में पोन्दुम सहित आदिगुड़ा, पल्लेवाया, पातरपारा आदि गांवों के लोगों को रोजगार मिल रहा है। इस बांध का कैचमेंट क्षेत्रफल 40.03 एकड़ और जलभराव का क्षेत्रफल 4.84 एकड़ बताया जा रहा है। वन क्षेत्रों में बनने वाले वाटर हार्वेस्टिंग इकाईयों में वन विभाग द्वारा ग्रामीणों को प्रोत्साहित करने के लिए मछली पालन जैसी आयमूलक गतिविधियां भी संचालित हो रही हैं। पोन्दुम गांव में बने मिट्टी के बांध में गांव की ग्राम स्तरीय समिति द्वारा ग्रामीणों के लिए मछली पालन भी हो रहा है। जिसका लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है। मिट्टी के इस बांध में रोहू, ग्रासकार्प, कॉमनकार्प और कतला प्रजाति की मछलियों के 100 किलो मछली बीज भी डालें गए हैं।