

भारत के 74 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर जब पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की हुई, तो सुभद्रा को ये पता नहीं था कि उनकी कला को भी एक नई पहचान मिलेगी और उन्हें भारत सरकार द्वारा सराहा जाएगा। उनकी कला के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मान से सम्मानित किया गया है।
पेपरमेशी कला
पेपरमेशी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में पहचान रखता है, लेकिन बिहार की सुभद्रा देवी ने बचपन में ही इस कला को सीखा था और दोस्तों के साथ इसे निखारती गईं। इस कला में कागजों को गलाकर उसे लुगदी के रूप में तैयार किया जाता है। जिसके बाद फूले हुए कागज को कूटकर उसमें गोंद नीना और थोथा का इस्तेमाल कर पेस्ट तैयार किया जाता है। इसी पेस्ट से कलाकृतियां बनाई जाती है। जिसे पेपरमेशी कला कहा जाता है।
पेपरमेशी कला में अलग अलग तरह की कलाकृतियां बनाई जाती है। भारत में त्योहारों के वक्त भी इस कला से मुखौटे और छोटी छोटी मूर्तियां बनाकर इनका प्रदर्शन किया जाता है। सामान्यत: पेपरमेशी कला का इस्तेमाल दशहरे जैसे त्योहारों के मौके पर रावण या मेघनाथ के मुखौटे देखा जाता है।
यही नहीं दक्षिण भारत में कथकली के नर्तक का मुखौटा भी पेपरमेशी कला से ही तैयार किया जाता है। इस कला की सुंदरता इस पर की गई चित्रकारी से उभरकर दिखाई देता है। पेपरमेशी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनती है।
कला को बनाने का तरीका
पेपरमेशी कला के लिए सबसे जरूरी है लुगदी को तैयार करना। ये सबसे मुश्किल और प्राथमिक काम होता है। सबसे पहले एक टब में पानी भर कर रखना होता है। इसके बाद कागज के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें टब के पानी में अच्छे से भिगो देना होता है। लुगदी बनाने की प्रक्रिया में इस बात ख्याल रखना चाहिए कि पानी कागजों के ऊपर हो और इसे एक हफ्ते पर बदल लिया जाए। कागज के टुकड़े को पानी में भिगोकर रखा जाता है। फिर दो हफ्ते होने के बाद उसे टब से निकाला जाता है। इतने दिनों तक पानी में रहने के कारण टूटे हुए कागज का में से छोटा छोटा रेशा बाहर निकल आता है और तब कागज लुगदी के लिए तैयार हो जाता है। दो हफ्ते बाद कागज को पानी से निकाल कर ऊखल में कूटकर इसका पेस्ट बनाया जाता है। पेस्ट के लिए नीला थोथा व गोंद मिला कर उसे तैयार कर दिया जाता है। इसके बाद जिस वस्तु का आकार बनाना होता है पेस्ट को उसका आखार दे दिया जाता है। पेपरमेशी कला राजस्थान में भी काफी प्रसिद्ध है।
सुभद्र देवी के बारे में
इस कला को नया रंग रूप देने वाली सुभद्रा देवी का ससुराल मधुबनी जिला मुख्यालय के पास भिट्ठी सलेमपुर गांव में है। सुभद्रा देवी वर्तमान में दिल्ली में रहती हैं। सुभद्रा देवी को जिस कला के लिए उनको नवाजा गया है वो भी अनोखा है। उन्हें पेपरमेशी कला में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ये पुरस्कार दिया गया है। इससे पहले उन्हें साल 1980 में राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।