सब-ऑर्डिनेट की मानसिकता खत्म हो- CJI चंद्रचूड़, जानें चीफ जस्टिस ने ऐसा क्यों कहा और क्या होता है सब-ऑर्डिनेट की मानसिकता !



CJI चंद्रचूड हमेशा अपने फैसलों और सोसायटी में बदलाव की दिशा में काम करने के लिए जाने जाते हैं। देश के चीफ चस्टिस का पद संभालते ही उन्होंने देश में डिस्ट्रिक्ट जजों के प्रति बर्ताव को लेकर कटाक्ष किया है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में बात करते हुए CJI ने कहा कि हाई कोर्ट के जजों को जिला अदालतों को सब-ऑर्डिनेट मानने की मानसिकता को बदलने की दिशा में काम करना चाहिए। यह हमारी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय करवाता है।

उन्होंने कहा कि कई जगह परंपरा है कि जब हाई कोर्ट जज लंच या डिनर करते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट जज खड़े रहते हैं। वे हाई कोर्ट जज को भोजन परोसने की भी कोशिश करते हैं। जब मैं जिला अदालतों के दौरे पर होता था, तो जोर देकर कहता था कि जब तक डिस्ट्रिक्ट जज साथ नहीं बैठेंगे, तब तकम मैं भी भोजन नहीं करूंगा।

हमने ही बढ़ाई है सब-ऑर्डिनेट की संस्कृति- सीजेआई

CJI चंद्रचूड ने कहा कि मुझे लगता है कि सब-ऑर्डिनेट संस्कृति को हम सभी ने मिलकर बढ़ाया है। हम जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका कहते हैं। मैं कहता हूं कि डिस्ट्रिक्ट जजों को सब-ऑर्डिनेट जजों के रूप में नहीं बुलाना चाहिए क्योंकि वे सब-ऑर्डिनेट नहीं हैं। इस सोच को बदलने की दिशा में काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि IAS अफसर ऐसा बर्ताव नहीं करते हैं।

कई बार जब डिस्ट्रिक्ट जजों को बैठकों के लिए आमंत्रित किया जाता है, तो वे हाई कोर्ट जजों के सामने बैठने की हिम्मत नहीं करते हैं। जब चीफ जस्टिस जिलों से गुजरते हैं, तो न्यायिक अधिकारी जिलों की सीमा पर कतार लगाकर खड़े रहते हैं। ऐसे उदाहरण हमारी औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय देते हैं। हमें इस सोच को बदलना होगा।

मॉडर्न ज्यूडिशियरी, इक्वल ज्यूडिशियरी की ओर बढ़ना जरूरी

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि- हमें इस सोच को बदलकर मॉडर्न ज्यूडिशियरी, इक्वल ज्यूडिशियरी की तरफ बढ़ना होगा। यह डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियरी के बुनियादी ढांचे में सुधार करने से नहीं बल्कि हमें हमारी मानसिकता को बदलने से होगा। हमें जिला न्यायपालिका में स्वाभिमान की भावना पैदा करनी चाहिए।

ज्यूडिशियरी में भी अब पीढ़ीगत बदलाव हो रहे हैं। जिसमें ज्यादा से ज्यादा युवा शामिल हैं। पहले जब भी पुरानी पीढ़ी के ट्रायल जज उनसे बात करते थे, तो हर दूसरे वाक्य में हां जी सर जोड़ा जाता था। अब ज्यूडिशियरी में अधिक महिलाएं भी शामिल हैं। हमें बदलने के लिए सबसे पहले जिला न्यायपालिका के चेहरे को बदलना होगा।

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Dr. Kirti Sisodia

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