दवाओं और वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए देश में बड़ी पहल की जा रही है। जानवरों की जगह अब लैब में मानव टिशू से विकसित अंगों पर क्लीनिकल ट्रायल किया जाएगा। अगले कुछ दिनों में भारत सरकार की ओर से इसके लिए जरूरी नियम-कानून और शर्तें की विस्तृत रिपोर्ट जारी होगी। इसके लिए न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स-2019 में बदलाव किया जाएगा। इसका ड्राफ्ट तैयार किया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, अमेरिका के बाद भारत विश्व का दूसरा ऐसा देश होगा, जहां कृत्रिम मानव अंगों पर क्लीनिकल ट्रायल होगा। ट्रायल में पैसे और समय की बचत होगी। दवा और वैक्सीन की एफिकेसी (प्रभाव) भी बढ़ेगी।
अभी ट्रायल में फेलियर रेट 80-90% है। नई व्यवस्था से सक्सेस रेट 80 से 90% तक हो सकता है।
टिशू से आर्टिफिशियल अंग बनाए जाएंगे
शुरुआती दौर में अस्पताल में भर्ती ऐसे मरीज, जिनकी सर्जरी होती है या जिनका ट्यूमर निकलता है या शरीर से जो बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है, उसी टिशू से लैब में मानव अंगों को विकसित किया जाएगा। इन्हीं अंगों पर दवा या वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल होगा। हालांकि छोटे जानवरों पर क्लीनिकल ट्रायल का विकल्प फार्मा और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के पास उपलब्ध रहेगा।
दवा कंपनियां अस्पतालों से टाइअप कर सकेंगी
पहले दौर में मानव टिशू से हृदय, लिवर, किडनी, ब्रेन, वेस्कुलर सिस्टम को लैब में तैयार किया जाएगा। नियम बनने के बाद बायो-फार्मा कंपनियों को अस्पतालों से टाइअप का अधिकार होगा। दवा कंपनियां अस्पतालों से टिशू लेकर लैब में अंग विकसित कर सकेंगी।