

राजस्थान की सरकार ने अपनी जन कल्याणकारी नीतियों के तहत मछली पालन उद्योग को बढ़ावा देते हुए रोजगार के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन को प्रोत्साहित किया है। राज्य के आदिवासी मछुआरों को शून्य राजस्व आजीविका मॉडल के तहत रोजगार के अवसर मिल रहे हैं जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो रही है। इस प्रयास के फलस्वरूप राजस्थान में मत्स्य पालन से जुड़े आदिवासी मछुआरे 6 हजार से अधिक लोग नियमित रोजगार और आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
राज्य के जनजाति उपयोजना क्षेत्र में आने वाले जयसमंद बांध, डूंगरपुर के कडाना बैक वाटर और बांसवाड़ा के माही बजाज सागर में आदिवासी मछुआरा समितियों ने मछली पालन के तहत आय के साधन विकसित किए हैं। इन मछुआरा समितियों के सदस्यों को शून्य राजस्व आजीविका मॉडल के माध्यम से नियमित रोजगार और आमदनी प्राप्त हो रही है।
राजस्थान में तैयार किए गए शून्य राजस्व आजीविका मॉडल के तहत मत्स्य पालन के लिए जलाशयों से किसी भी प्रकार का राजस्व नहीं किया जाता है। समितियों के सदस्यों को मछली की प्रजाति और आकार के अनुसार मछली पकड़ने का भुगतान विभाग द्वारा किया जाता है। इसके साथ ही मत्स्य विकास के लिए विभाग ने 60 लाख आंगुलिक मत्स्य बीज का संचयन करवाया है और जयसमंद बांध पर आधुनिक मत्स्य लैंडिंग सेंटर का निर्माण किया गया है।
इसी प्रयास के तहत राजस्थान सरकार ने अपने मत्स्य पालक किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए 20 हजार किसानों को मुफ्त में मछली के बीज प्रदान करने का निर्णय लिया है। इस उपकरण वितरण के लिए 2 करोड़ की राशि व्यय की जाएगी। साथ ही चयनित किसानों को जिला स्तर पर प्रशिक्षण भी उपलब्ध होगा।
जनता कल्याण के माध्यम से आदिवासी मछुआरों को बेहतर रोजगार का अवसर प्रदान करने के लिए शून्य राजस्व आजीविका मॉडल का संचालन किया जा रहा है। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है, बल्कि मत्स्य पालन उद्योग में नवाचारिकता और उत्थान का भी प्रोत्साहन मिल रहा है।