‘अंगदान’ कर बचा सकते हैं कई ज़िंदगियां, जानिए इसके बारे में



किसी के जीवन की रक्षा करने जैसी नेकी और कौन-सी होगी। अंगदान उसी नेकी का ही एक हिस्सा है। जब कोई दुनिया से जाए, तो उनके अंग कई लोगों की ज़िंदगी बचाने के काम आ सकते हैं। अंगदान कैसे किया जा सकता है, इसकी प्रक्रिया को विस्तार से जानिए।

हर साल 4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत अंग खराब होने से होती है। एक अनुमान के मुताबिक़ भारत में लगभग 1.8 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है, लेकिन एक साल में केवल 10,000 लोगों को ही किडनी मिल पाती है। लिवर और हार्ट के ट्रांसप्लांट की स्थिति भी ऐसी ही है और केवल 15 प्रतिशत लोगों को ही प्रत्यारोपण के लिए हार्ट मिल पाता है।

साल 2019 में भारत में 12,666 अंगों का ट्रांसप्लांट किया गया, जो अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। हालांकि, इनमें से 80 प्रतिशत मामलों में जीवित व्यक्तियों ने अपनी किडनी और लिवर का दान किया था। जीवित व्यक्ति केवल एक किडनी या लिवर का छोटा हिस्सा ही दान कर सकता है। इसलिए मृत व्यक्तियों के अंगदान की एक मज़बूत अंग ट्रांसप्लांट व्यवस्था का विकास किए जाने की ज़रूरत है, जिसमें सभी अंग शामिल हों।

ब्रेन डेथ के बाद अंगदान

ब्रेन डेथ के बाद एक अकेला डोनर 8 लोगों की जान बचा सकता है। इसमें हार्ट, दोनों लंग्स , लिवर, अग्न्याशय (पैंक्रियास) और छोटी आंत शामिल हैं, जो कि दान किए जा सकते हैं।

देश में ब्रेन डेथ के बाद अंगदान को बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है। ब्रेन डेथ आमतौर पर सिर में चोट लगने, स्ट्रोक, मस्तिष्क में ट्यूमर या इस्कीमिक ब्रेन इंजरी (मस्तिष्क की गहरी चोट, जिसमें मस्तिष्क में खून की आपूर्ति रुक जाती है) के कारण होता है। यह एक मेडिकल स्थिति है, जिसमें मरीज़ की सांसें वेंटिलेटर पर कृत्रिम रूप से चलाई जाती हैं। इसकी वजह से उसका दिल धड़कता रहता है, जबकि मरीज़ की मौत पहले ही हो चुकी होती है।

जिन लोगों की ब्रेन डेथ होती है, उनके मस्तिष्क में गहरी चोट लगने के कारण मस्तिष्क की मृत्यु तो हो जाती है पर दिल कुछ घंटों या दिनों तक धड़कता रहता है और अंगों में रक्त की आपूर्ति बनी रहती है।

अंगों का आवंटन कैसे होता है

अंगदान के पश्चात अंगों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था बनाए जाने की ज़रूरत है। यह समझना ज़रूरी है कि अंगों को स्टोर करके नहीं रखा जा सकता, लेकिन किसी उपयुक्त मरीज़ के शरीर में लगाए जाने के लिए स्टेराइल बर्फ में विशेष सॉल्यूशन में रखकर उनका परिवहन किया जा सकता है। अधिकांश सर्जन अंगों को शरीर में से निकालने के बाद हृदय का 4 से 5 घंटों में, फेफड़ों का 8 घंटों में, लिवर और छोटी आंत का 12 घंटों के अंदर, पैन्क्रियाज़ का 18 घंटों में और किडनी का 24 घंटों में ट्रांसप्लांट कर देते हैं।

अंगों का आवंटन स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय उपयोगिता के सिद्धांत पर आधारित है। सरकार इन अंगों को नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन (नोट्टो), रीज़नल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन (रोट्टो) और स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन (सोट्टो) द्वारा आवंटित करती है। आवंटन की प्रक्रिया पारदर्शी है और हर अंग के लिए मानक एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्यापित लिस्टिंग के मापदंड पर आधारित है।

अंगदान का संकल्प कैसे ले सकते हैं

ब्रेन डेथ के बाद परिवार अंगदान करता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति ने अंगदान का संकल्प नहीं लिया है तो मृत्यु के बाद परिवार अपनी रज़ामंदी से भी मृत व्यक्ति के अंगदान (त्वचा, हड्‌डी, आंखें) कर सकता है।

अंगदान करने के लिए ऑनलाइन शपथ पत्र भरकर प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है। 18 वर्ष से अधिक उम्र का हर व्यक्ति अपने अंगों व टिश्यू का दान करने का संकल्प दर्ज करा सकता है। अंगदान मुख्यतः ब्रेन डेथ की स्थिति में किया जा सकता है। लेकिन कॉर्निया, त्वचा और हड्डियां, जैसे टिश्यू मृत्यु होने पर व दिल का धड़कना बंद होने के 6 से 10 घंटों में दान किए जा सकते हैं। ब्रेन डेथ के दौरान व्यक्ति वेंटिलेटर पर होता है। इसलिए अंगदान करने का निर्णय परिवार को लेना होता है। संकल्प लिए जाने पर बाद में परिवार को निर्णय लेने में मदद मिलती है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि अंगदान करने का संकल्प लेते वक़्त व्यक्ति अपने परिवार को भी इसकी सूचना दे।

Avatar photo

Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

ALSO READ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *