Mahalaya 2024: महालया सर्व पितृ या पितृ विसर्जनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पितरों के विसर्जन का पर्व होने के साथ-साथ मां दुर्गा के स्वागत का भी प्रतीक है। यह दिन पितृ पक्ष की समाप्ति का सूचक होता है और नवरात्रि के प्रारंभ की घोषणा करता है। महालया का पितरों और देवी दुर्गा, दोनों से गहरा संबंध है, जो इसे धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
पितरों की विदाई का दिन
पितृ पक्ष का अंतिम दिन, जिसे महालया या पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है, पितरों को विदाई देने का पर्व है। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पूजन किया जाता है, जिन्हें हम भूल गए हैं या जिनका नाम और पहचान ज्ञात नहीं है। पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमारी ओर से किए गए तर्पण और श्राद्ध कर्म को स्वीकार करके संतुष्ट होते हैं। महालया के दिन किए गए इन कर्मों से पितरों की तृप्ति होती है और वे प्रसन्न होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं।
महालया का मां दुर्गा से संबंध
महालया का महत्व सिर्फ पितरों की विदाई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मां दुर्गा के आगमन का भी संकेत देता है। इस दिन मां दुर्गा की मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है और पंडाल सजने लगते हैं। यह दिन मां भगवती के पृथ्वी पर आगमन का संधिकाल माना जाता है। महालया के दिन से ही देवी दुर्गा की आराधना का वातावरण बनने लगता है, जोकि नवरात्रि के शुभारंभ तक चलता रहता है।
महालया का पौराणिक महत्व
महालया का पौराणिक महत्व भी बहुत गहरा है। कथा के अनुसार, जब अत्याचारी राक्षस महिषासुर ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपनी सामूहिक शक्ति से देवी दुर्गा का सृजन किया। महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर सकता। यह वरदान पाकर वह अति अहंकारी हो गया था। देवताओं ने अपनी शक्तियां मां दुर्गा को समर्पित की, जिससे उन्होंने नौ दिनों के भीषण युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया और संसार को उसके अत्याचार से मुक्त कराया। इस दिन को मां दुर्गा के धरती पर आगमन के रूप में मनाया जाता है, और इसे “महालया” नाम दिया गया।
पंचबलि कर्म और पापों का प्रायश्चित
महालया अमावस्या के दिन पंचबलि कर्म का विशेष महत्व होता है। इसमें गोबलि, श्वानबलि, काकबलि और देवादिबलि जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य न केवल पितरों को संतुष्ट करना होता है बल्कि पापों का प्रायश्चित भी किया जाता है। इस दिन दैहिक संस्कार, पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध, और सपिंडीकरण जैसे कर्मों का विशेष महत्व होता है, जिनसे व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।
महालया के दिन विशेष पूजा-विधान
महालया के दिन गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही, एक बर्तन में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ लेकर पीपल के वृक्ष की जड़ को सींचना चाहिए। कुछ स्थानों पर महिषासुरमर्दिनी पाठ का भी आयोजन किया जाता है, जो मां दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है।
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पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर
महालया का दिन धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह न केवल पितरों को श्रद्धांजलि और विदाई देने का पर्व है, बल्कि मां दुर्गा के स्वागत का संधिकाल भी है। यह पर्व हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है और साथ ही, देवी दुर्गा की आराधना के लिए वातावरण तैयार करता है। महालया का महत्व हर पीढ़ी को यह सिखाता है कि अपने पितरों का सम्मान और देवी की आराधना हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जिसे हमें सदैव बनाए रखना चाहिए।