Handloom of India: जानिए भारत के हैंडलूम की खासियत

Handloom of India: भारत में हैंडलूम का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। हैंडलूम सालों से भारतियों की आजीविका का साधन भी रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बढ़ावा देने के लिए हर साल 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ भी मनाया जाता है। भारत में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक फैले, पश्मीना, कांजीवरम, बनारसी, चंदेरी, पैठनी और बांधनी जैसे हैंडलूम हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। आइए जानते हैं राज्यों के अलग-अलग हैंडलूम्स (Handloom of India) और उनकी खासियत के बारे में।

कश्मीर का पश्मीना

कश्मीर की बात हो और पश्मीना का जिक्र ना आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। कश्मीर जाने वाला हर पर्यटक पश्मीना शॉल जरूर खरीदना चाहता है। लद्दाख में चांगरा बकरियों के ऊन से बनने वाला पश्मीना बहुत ही मुलायम और हल्का होता है, जो बुनाई और कढ़ाई के बाद कफी सुंदर नजर आता है। पश्मीना जितना नरम और मुलायम होता है पहनने में उतना ही गर्म होता है।

उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी

बनारसी साड़ियां उत्तर प्रदेश की शान हैं। इन्हें बुनने में असली सोने-चांदी के तारों का इस्तेमाल होता है। वाराणसी, मिर्जापुर, गोरखपुर जैसे जिलों में बनारसी साड़ी बनती है, जिसकी कीमत हजारों से लाखों तक होती है। एक बनारसी साड़ी बुनने में 3 कारीगर लगते हैं और इसे तैयार करने के में 6 महीने से 3 साल तक का समय लगता है। एक बनारसी साड़ी की कीमत तीन हजार से 2 लाख रुपए तक होती है।

MP की चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां

चंदेरी साड़ियां, जो अपनी बारीक बुनाई के लिए जानी जाती हैं, मध्यप्रदेश की विशेष पहचान हैं। वहीं महेश्वरी साड़ी, जो खास चौखड़ा डिजाइन में बनती है वो मध्य प्रदेश का मुख्य हथकरघा उत्पाद है। पहले के समय में कपास के महीने धागे से बनी चंदेरी की साड़ियां मुट्ठी में समा जाया करती थीं।

छत्तीसगढ़ का कोसा सिल्क

छत्तीसगढ़ के कोरबा और जांजगीर चांपा जिले में बनने वाला कोसा सिल्क अपने प्राकृतिक रंग और नरम टेक्सचर के कारण पूरे विश्व में मशहूर होता है। कोसा सिल्क को सिल्क की सबसे शुद्ध किस्म मानी जाती है। बुनकरों को एक साड़ी तैयार करने में 6 से 7 दिन का समय लगता है।

पश्चिम बंगाल का तांत कॉटन

बंगाल की तांत साड़ियां आरामदायक और खूबसूरत होती हैं। कम बजट में बढ़िया दिखना हो तो तांत साड़ी बेहतरीन विकल्प है, जो बंगाल की खास पहचान है। बंगाल में शांतिपुर और फुलिया दोनों जगह तांत की साड़ियों के लिए फेमस है।

तमिलनाडु का कांजीवरम सिल्क

तमिलनाडु का कांजीवरम सिल्क अपनी चमक और शाही अंदाज के लिए मशहूर है। इसे भारत के कोने-कोने में और विदेशों में भी पसंद किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कांजीवरण साड़ियां बुनने वाले बुनकर महर्षि मार्कण्डे के वंशज माने जाते हैं। मान्यता है कि पहले ये बुनकर कमल के रेशे से देवी-देवताओं के लिए कपड़े बुना करते थे।

कर्नाटक का मैसूर सिल्क

कर्नाटक के मैसूर का सिल्क भी काफी प्रसिद्ध है। इसका उत्पादन टीपू सुल्तान के समय में शुरू हुआ और इसकी जरी में असली सोने और चांदी का इस्तेमाल होता है। स्वतंत्रता के बाद मैसूर राज्य रेशम विभाग ने रेशम बुनाई कारखानों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और 1980 में कारखाने को कर्नाटक रेशम उद्योग को सौंप दिया गया। मैसूर सिल्क साड़ी की जरी में 65 प्रतिशत चांदी और 0.65 प्रतिशत सोना होन के कारण ये भारत की महंगी साड़ियों में से एक मानी जाती है।

ओडिशा की संबलपुरी साड़ी

ओडिशा की संबलपुरी साड़ियां अपनी पारंपरिक बुनाई और टाई-डाई के लिए जानी जाती हैं। इस पर शंख, चक्र जैसे पारंपरिक चिन्ह बनाए जाते हैं।संबलपुर साड़ी ओडिशा के संबलपुर, बलांगीर, बरगढ़, बौध और सोनपुर जिले में पारंपरिक रूप से हाथ से बुनकर बनाई जाती है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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