खुद के अंदर मिलेंगे “प्रभु श्री राम!

तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।

राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार॥

तुलसीदास जी की ये पंक्तियां मुझे काफी प्रभावित करती है। यही वजह है कि मैंने अपनी बात की शुरूआत इनसे की। इस दोहे का अर्थ है कि जिनकी श्री राम में ममता और सब संसार में समता है, जिनका किसी के प्रति राग, द्वेष, दोष और दुःख का भाव नहीं है, श्री राम के ऐसे भक्त भव सागर से पार हो चुके हैं।

अगर सरल अर्थों में कहा जाए तो हम भारतीय राम के दिखाए इन मार्गों पर चलकर विश्व शांति के दूत बनने की राह पर हैं। जहां आज भारत के कुछ पड़ोसी राज्य और दुनिया के कुछ देश गरीबी, अशांति और युद्ध जैसी स्थितियों से गुजर रहे हैं वहीं भारत नित नई ऊंचाईयों की तरफ बढ़ रहा है। मुझे लगता है भगवान श्री राम को उल्लेखित करते हुए तुलसीदास जी ने पहले ही भारतीयों को ममता और समता का पाठ पढ़ा दिया था। आज मुझे खुशी है कि 22 जनवरी 2025 को एक बार फिर से मैं उस घड़ी की साक्षी हूं जब भगवान श्री राम के अयोध्या में बनें भव्य मंदिर की पहली वर्षगांठ मनाई जा रही है।

ये अवसर भारत में केवल भव्यता का उत्सव नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक मूल्यों का भी प्रतिबिंब है। ये मंदिर न केवल एक स्थापत्य कृति है, बल्कि हमारे समाज और उसकी सामूहिक चेतना का एक प्रतीक भी है। भगवान राम, जिनका जीवन धर्म, सत्य, और पुरुषार्थ का आदर्श है, उनकी स्मृति में निर्मित यह मंदिर भारतीयता के मूल तत्वों को साकार करता है।

अयोध्या में बनें मंदिरी की बात करूं तो ये राम की जन्मभूमि है, जो सदियों से भारतीय संस्कृति का केंद्र रही है। यह भूमि केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं रखती, बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रतिष्ठित है। अयोध्या का उल्लेख वैदिक ग्रंथों से लेकर रामायण और पुराणों में मिलता है। समय के साथ, यह स्थान न केवल हिंदू आस्था का केंद्र बना, बल्कि भारतीय इतिहास और राजनीति का भी अभिन्न हिस्सा बन गया। राम मंदिर का निर्माण इस लंबी यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह संघर्ष और विश्वास का प्रतीक है, जिसने भारतीय समाज को एकजुट किया। वहीं

मैं जब मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को याद करती हूं तो मेरी आंखो के सामने उन दिनों आने वाली बाधाएं गुजर जाती हैं। जहां राम जन्मभूमि सदियों तक विवादों का केंद्र बना रहा। वहीं इसकी पहचान के संघर्ष में भी भगवान राम के आदर्शों की झलक दिखाई दी – सब्र, सहनशीलता और अंततः न्याय। जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस भूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, तो यह केवल एक कानूनी निर्णय नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी था।

आज राम मंदिर के निर्माण को पूरे एक वर्ष हो गए, ऐसे में जब हम ये उत्सव मना रहे हैं तो ये समय आत्मनिरीक्षण का भी है। हमें सोचना होगा कि क्या हम अपने जीवन में राम के आदर्शों को स्थान दे पा रहे हैं? क्या हम उनके दिखाए सत्य और धर्म के मार्ग पर चल पा रहे हैं? जिसमें मदद करेगा अयोध्या का राम मंदिर,

अयोध्या का यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज का दर्पण है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ें कितनी गहरी हैं। यह एक प्रेरणा है कि हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों को संजोते हुए आधुनिकता के साथ कदम बढ़ाना है। आज हम जो उत्सव मना रहे हैं वो एक अवसर है अपने भीतर राम को खोजने का। जो आने वाली पीढ़ियों को हमारे इतिहास, हमारी संस्कृति और हमारे आदर्शों की याद दिलाएगा। आप सभी को प्रभु श्री राम मंदिर अयोध्या की पहली वर्षगांठ की शुभकामनाएं।

Shubhendra Gohil

Content Writer

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