“If Independence is granted to India, power will go to the hands of rascals, rogues, freebooters; all Indian leaders will be of low calibre and men of straw. India will be lost in political squabbles”
First General Election Of India: पूर्व ब्रिटिश Prime Minister और राजनीतिज्ञ विंस्टन चर्चिल ने जिस देश के बारे में ये बाते कहीं थी, उस देश ने 75 सालों तक सफलता पूर्वक लोकतंत्र की मजबूती को बनाए रखा। यही नहीं दुनियाभर में राजनैतिक आदर्श के रूप में भी अपनी एक अलग पहचान रखी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरूआत कैसे हुई, हम लोकतंत्र यानी की जनता के शासन को कैसे कायम कर पाए, कैसे हमना अपना प्रतिनिधि चुना जो देश चलाने में हमारी लीडरशिप कर सके। आजादी के बाद आधी से ज्यादा आबादी ने अशिक्षा और गरीबी से लड़ते हुए लोकतंत्र में अपनी सहभागिता कैसे निभाई और और कैसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही महिलाओं ने अपनी भूमिका सुनिश्चित की, उस उत्सव में जिसे लोकतंत्र का त्यौहार ‘चुनाव’ कहते हैं। आज हम जानेंगे चुनाव के 75 सालों का स्वर्णिम इतिहास कैसा रहा?
ऐसे पड़ी भारतीय लोकतंत्र की नींव
1947 में भारत की आजाद के बाद लोकतंत्र की स्थापना के लिए चुनाव की जरूरत पड़ी। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए भारत में पहले चुनाव आयोग की स्थापना गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले यानी कि 25 जनवरी 1950 को हुई। इसी दिन भारत में मतदाता दिवस मनाते हैं। सुकुमार सेन को भारत में चुनाव करवाने की जिम्मेदारी दी गई, सेन भारत के पहले चुनाव आयुक्त बनें।
भारत का चुनाव आयोग तो बन गया, लेकिन अब बड़ी समस्या थी कि आजाद भारत के 36 करोड़ लोगों को चुनाव में कैसे शामिल किया जाए। जबकि लोग तो गरीबी, सांम्प्रदायिक भेदभाव, अशिक्षा और गरीबी से लड़ रहे थे। खुद नेहरू पश्चिमी देशों की तरह ये सोचते थे कि भारत में चुनाव कराना लगभग नामुमकिन है भारतीय इसको नहीं समझ पाएंगे।
बड़े नेताओं के विचार-विमर्श, कई मीटिंग्स, रणनीतियों में ये तय हुआ कि भारत में 5 अक्टूबर, 1951 और 21 फ़रवरी, 1952 के बीच पहले आम चुनाव कराए जाएंगे। खास बात ये थी कि चुनाव में भाग लेने वाली भारतीय लोगों की आबादी दुनिया का लगभग 17 फीसदी हिस्सा था। और ये भारत का पहला आम चुनाव (First General Election Of India) दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था।
कैसे हुआ भारत के पहले चुनाव का प्रचार-प्रसार?
अब आयी प्रचार प्रसार की बारी, तब रेडियो टेलीविजन और अखबार की पहुंच आम नहीं थी। तो प्रचार का सबसे सही तरीका था वन-टू-वन यानी कि लोगों तक पहुंच कर सीधी बात की जाए। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी अकेली पार्टी थी जिसने रेडियो पर अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार किया वो भी आकाशवाणी पर नहीं, बल्कि रेडियो मॉस्को पर।
पहले आम चुनाव (First General Election Of India) के प्रचारों पर एक ब्रिटिश विश्लेषक लॉर्ड बर्डवुड ने अपने लेख ‘अ कॉन्टिनेंट डिसाइड्स’ में लिखा था, “दिल्ली की दीवारों, सड़कों और यहाँ तक कि मूर्तियों तक पर चुनाव प्रचार के पोस्टर लगे हुए थे”
एक दिलचस्प चुनाव प्रचार के बारे में हम आपको बताते हैं जो शायद अब तक का सबसे यूनिक प्रचार आइडिया होगा, “पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए आवारा मवेशियों की पीठ का इस्तेमाल किया गया। जिस पर लिखा होता था, फलानी पार्टी को वोट दीजिए”
द्वीपों में मतदाता सूची पहुंचाने नौसैनिक पोत का इस्तेमाल
चुनाव के समय अक्सर एक खबर पर आपकी नजर पड़ती होगी कि मतदान के लिए मतदान टीम ने नदी पार की, पहाड़ पार किए या फिर एक वोट के लिए घने जंगलों में गए। देश के पहले मतदान के लिए भी ये सब हुआ। कुछ दुर्गम पहाड़ी इलाकों में मतपेटियाँ पहुंचाने के लिए ख़ासतौर से पुल बनाए गए। हिंद महासागर के कुछ द्वीपों में मतदाता सूची पहुंचाने के लिए नौसैनिक पोत का उपयोग किया गया।
नाम के आगे छापा गया चुनाव चिन्ह
पश्चिमी देशों के अधिकतर मतदाता उम्मीदवार को उसके नाम से पहचानते थे लेकिन भारत में अधिकतर लोगों के अशिक्षित होने के कारण मतपत्र में मतदाताओं के नाम के आगे चुनाव चिन्ह छापा गया। हर मतदान केंद्र पर मतपेटियाँ रखी रहती थीं जिस पर पार्टी का चुनाव चिन्ह बना होता था और मतदाताओं को उसमें अपना वोट डालना होता था।
वोट डालने किया गया जागरूक
अगर आप वोट डालते हैं तो आपको फॉस्फोरिक इंक के बारे में पता होगा। इसे वोट डालने के बाद आपकी उंगली में लगाया जाता था। भारत के पहले आम चुनाव (First General Election Of India) में नकली मतदाताओं से बचने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्याही बनाई थी जो मतदाता की उंगली पर एक सप्ताह के लिए बनी रही। इसके साथ ही भारतीय मतदाताओं को चुनाव के लिए जागरूक करने 3000 सिनेमाघरों में चुनाव और मतदाताओं के अधिकार से संबंधित शॉर्ट फिल्म दिखाई गई।
सभी को मिला मतदान का अधिकार
डेवलपमेंट, एजुकेशन और बेहतर हेल्थ सिस्टम की बात करने वाले पश्चिमी और विकास की तरफ बढ़ रहे देशों में भी सिर्फ ज़मीन जायदाद रखने वाले लोगों को वोट डालने का अधिकार दिया गया था। मज़दूर और महिलाएं वोट नहीं डाल सकती थीं। लेकिन इस मामले में भारत ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी। ये बात काफी दिलचस्प थी आजाद भारत में गरीब, महिला, अशिक्षित, शिक्षित, धनी और कारोबारी सभी वर्ग को व्यस्क मताधिकार का अधिकार दिया गया।
महिलाएं कैसे बनीं चुनाव का हिस्सा?
चुनाव आयोग को मतदाता लिस्ट में महिलाओं के नाम जोड़ने में असली परेशानी का सामना करना पड़ा। रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में इस बात का जिक्र है कि महिलाएं अपना नाम नहीं बताना चाहती थीं। भारतीय महिलाएं अपना परिचय किसी की बेटी या किसी की पत्नी के रूप में देती थी। चुनाव आयोग ये चाहता था कि हर मतदाता का नाम मतदाता सूची में लिखा जाए। जिसका परिणाम ये हुआ कि करीब 80 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची लिखा ही नहीं जा सका।“
एक दिलचस्प बात ये भी है कि आज जिस एक देश एक चुनाव का कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, भारत के पहले आम चुनाव में इसे लागू किया गया था। इस चुनाव में देश के राज्यों और विधानसभाओं के लिए एकसाथ चुनाव करवाए गए।
लोगों ने लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा
भारत में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भारत के पहले आम चुनाव ने सभी को हैरान कर दिया। गरीबी और निरक्षरता के बावजूद योग्य आबादी में से 45.7% मतदाता, पहली बार वोट डालने के लिए अपने घरों से बाहर निकले। और भारत भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना, जहां लोगों ने, लोगों के लिए एक सरकार चुनी। भारत में कुल 2 लाख 24 हज़ार मतदान केंद्र बने। लोहे की 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गई और जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था। कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया।
10 करोड़ लोगों ने एकसाथ किया मतदान
अगर हम ये कहेंगे कि कि भारत का पहला आम चुनाव किसी रोमांचक सामूहिक मनोविज्ञान से कम नहीं था तो ये गलत नहीं होगा। ये एक सफल उदाहरण के रूप में इतिहास के पन्नों में अंकित हुआ पहले आम चुनाव में लोकसभा की 497 और राज्य विधानसभाओं की 3,283 सीटों के लिए भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया था। इनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने वोट दिया। जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे और उन्होंने अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करके पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया।
Positive सार
15 अगस्त 1947 को जब भारत ब्रिटिश हुकूमत की दासता से आजाद हुआ तो पूरी दुनिया ये सोचती थी कि इस लुटे-पिटे देश को उबरने में शायद 100 साल लग जाएंगे। किसी ने ये कल्पना भी नहीं की होगी कि संसदीय लोकतंत्र को अपनाकर भारत देश दुनिया की सबसे बड़ी चुनाव प्रक्रिया वाला राष्ट्र बनेगा।
2019 के आंकड़ों पर नजर डालें तो 90 करोड़ मतदाता, 1900 के करीब पॉलिटिकल पार्टीज और सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा चुनाव पर्व हर किसी को आश्चर्य करता है। भले ही चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र में कुछ खामियां होंगी, लेकिन जब हम अतीत मे लौटकर विचार करें तो इसे अविश्वसनीय उपलब्धि कहने से नकारा नहीं जा सकता है।