Bharat Bandh: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को लेकर कोटा में कोटा और क्रीमीलेयर व्यवस्था लागू करने का फैसला किया है। इस फैसले के विरोध में देश के दलित और आदिवासी संगठनों ने भारत बंद (Bharat Bandh) बुलाया है। संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आरक्षित वर्ग के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने ही 2004 में हुए फैसले को बदलते हुए एक नया फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार अब राज्य सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण के लिए कोटा के अंदर कोटा यानी सब कैटेगिरी और क्रीमीलेयर कैटेगिरी बना सकती है। राज्य की विधानसभाओं को इससे जुड़ा कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस फैसले से SC-ST वर्ग में जो सबसे ज्यादा जरूरतमंद है उन्हें प्राथमिकता मिलेगी। इस फैसले को 7 जजों की बेंच ने 6-1 से पास किया था। बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे।
क्यों बुलाया बंद ?
शांतिपूर्ण भारत बंद (Bharat Bandh) का आह्वान ‘नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन’ (NACDAOR)ने किया है, वो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सहमत नहीं हैं। संगठन का मानना है कि यह फैसला आरक्षण व्यवस्था के मौलिक अधिकारों का हनन है। संगठन का कहना है कि संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को दिया गया आरक्षण उन्हें समाज में समान अधिकार दिलाने के लिए है। यह व्यवस्था उस छुआछूत और भेदभाव को मिटाने के लिए की गई थी जो उनके साथ पहले हुआ था।(bharat band)
क्या है संगठन की मांग?
भारत बंद (Bharat Bandh) के पीछे संगठनों ने सरकार से जो मांग की है वो इस तरह है-
- सुप्रीम कोर्ट से अपना फैसला वापस लेने की मांग
 - सुप्रीम कोर्ट कोटे में कोटे वाले फैसले पर फिर से विचार करे
 - सरकारी नौकरियों में SC, ST, OBC कर्मचारियो का जातिगत आंकड़ा जारी हो
 - भारतीय न्यायिक सेवा के माध्यम से न्यायिक अधिकारी और जज की नियुक्ति हो
 - हायर ज्यूडिशियरी में SC, ST, OBC का 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व हो
 - सरकारी भर्तियों में SC, ST, OBC का प्रतिनिधित्व तय हो
 - संविधान की नौवीं अनुसूची में नया कानून बनें जिसे न्यायिक हस्तक्षेप से बचाया जा सके
 
				
