Sustainable accessories: मदर-डॉटर एक ऐसा रिलेशनशिप है जो बेस्ट कम्पैनियन होते हैं। इनका कॉम्बिनेशन जब बनता है तो कुछ बेहतर हमेशा होता है। ये कहानी भी एक ऐसी ही मां-बेटी की है जो जिंदादिल और क्रिएटिविटी की मिसाल तो हैं ही साथ ही पर्यावरण के लिए भी वो बहुत कुछ कर रही हैं। यही नहीं उन्होंने कई हाउस वाइव्स की लाइफ में सकारात्मक बदलाव भी लाया है।
क्या है पूरी कहानी?
कोटा की रहने वाली ऐश्वर्या कुछ समय पहले शार्क टैंक के एक सीजन में Ekatra, को लेकर पहुंची थीं। ये उनका स्टार्टअप है जिसे वो अपनी मां मिनाक्षी झावर के साथ चलाती हैं। उनकी कंपनी सस्टेनेबल, हैंडमेड स्टेशनरी बेचती है। इन प्रोडक्ट्स को Ekatra द्वारा प्रशिक्षित गृहिणियों द्वारा बनाया जाता है।
गृहणियों की कला को देखकर आया आइडिया
ऐश्वर्या बताती हैं कि वो एक प्रोजेक्ट के तहत गृहिणियों के साथ काम कर रही थी, यहीं पर उन्हें ये समझने का मौका मिला कि जो अनिवार्य रूप से शिल्प समुदायों से नहीं हैं लेकिन फिर भी वे जो कुछ भी करते हैं उसमें अभी भी उनकी कुशलता और क्रिएटिविटी झलकती है। लेकिन उनके समय का कोई वैल्यु मार्केट में नहीं दिया जाता है। ऐश्वर्या ने उन्हीं पर काम करना शुरू किया। उन्होंने Ekatra की शुरुआत एक हैंडमेड स्टेशनरी स्टॉल के रूप में की जिसे ऐश्वर्या ने एक कॉलेज पॉप-अप में लगाया था। इसके बाद उन्हें एक कॉन्फ्रेंस के लिए एक बड़ा ऑर्डर मिला, जिसमें उनकी मां मिनाक्षी ने मदद की और अपने साथ करने के लिए कुछ गृहिणियों को शामिल किया।
ऐश्वर्या कहती हैं कि जो काम अभी वो कर रही हैं इसकी शुरूआत काफी मुश्किल थी। इसके लिए बहुत समय और ऊर्जा की जरूरत थी। शुरूआती दौर में उनके पास कोई टीम भी नहीं थी। इसलिए उन्होंने इसे फुल-टाइम करने का फैसला लिया। आज कंपनी ने 27% शुद्ध लाभ के साथ 1 करोड़ रुपये के व्यवसाय को पार कर लिया है। Ekatra ने अब तक 45 गृहणियों के साथ साझेदारी की है, जो सभी कोटा, राजस्थान से काम कर रही हैं।
ऐश्वर्या Ekatra से जुड़ी गृहिणी से कारीगर बनीं फैमिदा कहती हैं कि कोविड के दौरान जब उन्होंने अपने पति को खो दिया तो उनके परिवार में आर्थिक संकट आ घिरा। उनकी तीन बेटियों और एक बेटे की देखभाल में मुश्किल होने लगी। वो अपने रिश्तेदारों के माध्यम से Ekatra से जुड़ीं और तब से वह प्रति माह 18-20,000 रुपये की अच्छी कमाई कर लेती हैं। महिलाओं पर किए गए कई रिपोर्ट्स पर ध्यान दें तो भारत में सबसे कम उपयोग किए जाने वाले और कुशल संसाधनों में से कुछ ही हैं जो क्रिएटिव काम से जुड़े हैं। रिपोर्ट्स कहती हैं कि 11% भारतीय गृहिणियां पहले से ही पार्ट-टाइम नौकरियों/साइड बिजनेस या फैमिली बिजनेस में कुछ न कुछ कर रही हैं। उन्हें अपना कौशल और अनुभव दिखाने का मन तो होता है लेकिन मौका नहीं मिलता है। जिन्हें मौका मिल रहा है वो इसका विस्तार कर रही हैं, जबकि 17% युवा गृहिणियों की मानें तो वो घर से काम शुरू करने की इच्छुक हैं। कुल मिलाकर महिलाओं में इच्छाशक्ति और हुनर की कमी नहीं है, उनकी उनकी शक्ति को बल देती हैं Ekatra जैसी संस्थाएं जो बेहतर होने के उम्मीद के रूप में जीवित रहती हैं।