कैलाश पर्वत धरती का स्वर्ग है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का वास यहीं पर है। लेकिन भारत-चीन विवाद के चलते कई सालों से कैलाश पर्वत के दर्शन पर बैन लगा हुआ है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी 12 अक्टूबर को पिथौरागढ़ में चीन सीमा पर मौजूद आदि कैलाश पर्वत और पार्वती ताल के दर्शन कर ध्यान लगाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले पीएम होंगे,जो उत्तराखंड से लगी भारत-चीन सीमा पर आदि कैलाश पर्वत के दर्शन करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी जिस जगह से कैलाश पर्वत के दर्शन करेंगे, उसका नाम जोलिंगकोंग है। ये समुद्र तल से 15000 फीट पर मौजूद है। यहां से 20 किलोमीटर की दूरी के बाद ही चीन की सीमा शुरू हो जाती है।
खास बात ये है कि कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए इस व्यू पाइंट को कुछ ही दिनों पहले खोजा गया है जिससे अब भारत के लोग कैलाश पर्वत को देख सकेंगे। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की 18 हजार फीट ऊंची लिपुलेख पहाड़ियों से कैलाश पर्वत साफ दिखता है।
होंगे कैलाश के दर्शन
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा जाता है। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस नए दर्शन मार्ग को स्थानीय ग्रामीणों ने खोजा है। ग्रामीणों की सूचना पर अफसरों और विशेषज्ञों की टीम ने रोड मैप, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, दर्शन के पॉइंट तक जाने का रूट सहित दूसरी चीजों पर रिसर्च की।
ऐसे पहुंचना होगा
4-5 दिन की यात्रा करके कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। पर्यटकों या श्रद्धालुओं को सड़क मार्ग से धारचूला और बूढ़ी के रास्ते नाभीढांग तक पहुंचना होता है, जिसके बाद दो किलोमीटर की चढ़ाई को पैदल तय करना पड़ेगा। पर्यटन विभाग के मुताबिक ओल्ड लिपुलेख पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है, जो आसान नहीं है। स्नो स्कूटर की मदद से भी श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पहाड़ी की चोटी तक पहुंचाया जा सकेगा।
लिंपियाधूरा चोटी से भी दर्शन
स्थानीय लोगों का कहना है कि पिथौरागढ़ के ही ज्योलिंगकांग से 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधूरा चोटी से भी कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। लिंपियाधूरा चोटी के पास ओम पर्वत, आदि कैलाश और पार्वती सरोवर भी मौजूद है।
कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली है, इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत मौजूद है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं, यहां उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग की तरह है।
हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का काफी महत्व है। परिक्रमा 52 किमी की होती है। तिब्बत के लोगों की मान्यता है कि उन्हें इस पर्वत की 3 या फिर 13 परिक्रमा करनी चाहिए। इस नए व्यू पाइंट के मिलने से भारतीय श्रद्धालुओं को एक बार फिर से कैलाश के दर्शन होंगे।