शिक्षा वह
प्रकाश है, जिससे जीवन का अंधकार दूर होता है। विद्वानों का
भी
मानना है कि
बिना ज्ञान के बिना कुछ भी
संभव नहीं है। शिक्षा जीवन की दिशा तय करती है और इस बात को जानते हैं महाराष्ट्र के अभिजीत पोखर्निकर। और इसीलिए वह झुग्गी के
गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। अभीजीत ऐसे बच्चों की उम्मीद हैं जिनके लिए स्कूल एक
सपना है। 21
साल के अभिजीत पुणे से कंप्यूटर
एप्लीकेशन की पढ़ाई कर रहे हैं। साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनकी
पहचान बन रही है।
लॉकडाउन के दौरान अभिजीत ने ‘दादा ची शाला‘ की शुरूआत की, जिसका अर्थ हैं बडे
भाई की पाठशाला। यह मिशन नोमैडिक ट्राइब्स बच्चों के लिए शुरू किया गया था। अभिजीत इस मिशन से सुनिश्चित करना चाहते
थे कि नोमैडिक ट्राइब्स जो ट्रैफिक सिग्नल पर खिलौने, और अन्य घरेलू
आवश्यक सामान बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं उनके बच्चे
अपनी शिक्षा जारी रखें।
सड़क किनारे काम करने वालों के बच्चों को साक्षर बनाना है मिशन !
अभिजीत 2018 से एक समाजिक कार्यकर्ता के
रूप मे काम कर रहे है। वहीं से उन्हे इस बात का आभास हुआ की स्ट्रीट पर घूम रहे
बच्चों के लिए कुछ किया जाना चाहिए। अभिजीत
का मानना हैं कि पूणे की स्ट्रीट में करीब 14 हजार बच्चे ऐसे हैं जिन्हे उचित
शिक्षा नहीं मिल पाती है। उनके पास सहीं दस्तावेज न होना भी एक बड़ी परेशानी है।
जिसके कारण ऐसे बच्चे किसी भी अच्छे शैक्षणिक संस्थान एडमिशन नहीं ले पाते हैं।
एक वर्ष पहले हुई थी ‘दादा ची शाला’ की शुरुआत
पिछले वर्ष लॉकडाउन के समय जब सभी
बच्चों की शिक्षा रुक गयी थी। जिन बच्चों के पास साधन थे उन्होने ऑनलाइन के माध्यम
से अपनी पढ़ाई जारी रखी। लेकिन वहीं गरीब बच्चें लॉकडाउन की वजह से शिक्षा प्राप्त
कर पाने में असमर्थ थे। तभी अभीजीत ने ‘दादा ची शाला’ मिशन की शुरूआत
की। जैसे ही जुलाई 2020 में, COVID-19 लॉकडाउन की प्रतिबंधों
में ढील दी गई, वह अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ ईंट भट्ठा श्रमिकों के बच्चों
को शिक्षित करने के लिए उनके पास पहुंचे। लगभग एक साल मे यह मिशन
बढ़ते-बढ़ते ‘दादा ची शाला’ के रूप ने में विकसित
हो गया, जिसमें अब करीब 120 वंचित बच्चों को वह
शिक्षित कर रहे हैं।