Padmshree 2024: जागेश्वर यादव जिन्होंने बदला छत्तीसगढ़ के बिरहोर जनजाति का जीवन!

Padmshree 2024 के नामों की लिस्ट में छत्तीसगढ़ के एक ऐसे व्यक्तित्व का भी नाम शामिल है जिन्होंने दूसरों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका नाम है जागेश्वर यादव, जिन्हें Padmshree का सम्मान इस साल दिया जाएगा। बता दें कि साल 2024 के लिए पद्म सम्मान की घोषणा कर दी गई है जिसमें 132 हस्तियों का नाम शामिल है। इनमें 5 लोगों को पद्म विभूषण, 17 लोगों को पद्मभूषण और 110 लोगों को पद्मश्री अवार्ड दिया जाएगा। इनमें छत्तीसगढ़ राज्य के तीन लोगों को पद्मश्री अवार्ड मिलेगा। इन तीन नामों में जशपुर के जागेश्वर यादव, रायगढ़ के रामलाल बरेठ और नारायणपुर के हेमचंद मांझी का नाम शामिल है। सभी की अलग और प्रेरणादायी कहानी है, ऐसी ही कहानियों में से एक कहानी है जशपुर के जागेश्वर की जिन्होंने बिरहोर जनजाति के जीवन में रोशनी लाई है। 

क्या है जागेश्वर की कहानी?

Padmshree 2024 सम्मान पाने वाले जागेश्वर देखने में एकदम सीधे-सादे सरल और पूरी तरह से ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े हुए नजर आ जाएंगे। किसी भी छत्तीसगढ़ निवासी की तरह साधारण दिखने वाले जागेश्वर असाधारण लोगों में से एक है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जागेश्वर ने जशपुर के एक ऐसी जनजाति को मुख्यधारा से जोड़ा है जिन्हें विशेष संरक्षित जनजाति कहा जाता है। जागेश्वर जशपुर जिले के कुनकुरी ब्लाक में बादलखोल अभ्यारण्य क्षेत्र के घने जंगलो के बीच बसे एक छोटे से गांव भीतरघरा में रहते हैं। 

बिरहोर जनजाति को मुख्यधारा से जोड़ने का कर रहे हैं काम 

छत्तीसगढ़ की बिरहोर जनजाति विशेष पिछड़ी जनजाति में से एक है। इस जनजाति को शिक्षित करने के लिए जागेश्वर राम यादव ने दिन-रात एक किया है। बात तब की है जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था। तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान बिरहोर जनजाति को घने जंगलों से निकालकर बस्तियों मे बसाने का काम किया था। राज्य सरकार ने इनके जीविकोपार्जन के लिए इन्हे जमीन भी उपलब्ध करवाई थी लेकिन घने जंगल में जीवन की आदत इन जनजातियों को आम लोगों से जुड़ने में परेशानी खड़ी कर रही थी। यही वजह थी कि बिरहोर जनजाति के लोग ग्रामीण परिवेश मे खुद को नहीं ढाल पा रहे थे। कई साल ऐसा ही गुजरता गया जिससे ये लोग लगातार विकास मे पिछड़ते चले गए।

स्वास्थ्य, शिक्षा और बेहतर जीवन की कमी के चलते इनकी जनसंख्या लगातार कम होने लगी जिससे बिरहोर जनजाति विलुप्ति के कगार पर थे। 

इस परेशानी को देखते हुए भीतरघरा के निवासी जागेश्वर राम यादव ने इनके विकास की ओर कदम बढ़ाया। चूंकि बिरहोर जाति के लोग आम लोगो से जल्दी घुलते मिलते नहीं थे इसलिए जागेश्वर राम ने उनसे सम्पर्क बढ़ाने के लिए उनके जीवनशैली को अपनाने की ठानी। 

जागेश्वर राम ने सबसे पहले चप्पल का त्याग किया। उन्होंने बिरहोर जनजाति की ही तरह हाफ पेंट पहनकर जमीन पर सोना शुरू किया। धीरे धीरे जागेश्वर राम ने बिरहोर जाति के लोगों का विश्वास जीत लिया। इसके बाद उन्होंने, बिरहोर के स्वास्थ्य सुधारने की दिशा मे काम करना शुरू कर दिया। जागेश्वर राम ने युवाओ को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने का काम किया। ये उनके लगातार प्रयास और कड़ी मेहनत का ही नतीजा था कि साल 2021 मे पहली बार, बिरहोर जाति की एक युवती ने बोर्ड परीक्षा मे पहला स्थान हासिल किया। 

बिरहोर भाई के नाम से पहचान 

Padmshree 2024 सम्मान पाने वाले जागेश्वर राम यादव को इससे पहले बिरहोर जाति की सेवा के लिए शहीद वीर नारायण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। जशपुर जिले मे बिरहोर भाई के नाम से उनकी पहचान है। 

Positive सार 

जागेश्वर राम यादव की चमक आज पूरा देश महसूस कर रहा है। उन्हें Padmshree 2024 का सम्मान मिलना छत्तीसगढ़ का गौरव है। उन्होंने एक ऐसी कम्यूनिटी के लिए काम किया जिससे वो खुद भी संबंध नहीं रखते हैं। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि उनके लिए ये कितना मुश्किल रहा होगा। आज उनकी कोशिश से भारत की एक विलुप्त होती जनजाति को संरक्षित किया जा सका है। उनके योगदान और समर्पण को seepositive का सलाम है। 

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Rishita Diwan

Content Writer

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1 Comment

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