मध्यप्रदेश के एक गांव से निकल रहे हैं ‘स्केटिंग चैंपियन’

स छोटी सी खबर से पहले आपको टोक्यो ओलंपिक 2020 की याद
दिलाते हैं। ओलंपिक में पहली बार स्केटबोर्डिंग को बतौर खेल शामिल किया गया। और
इससे भी ज्यादा कमाल की बात थी कि महज 12 से 13 से साल के तीन बच्चों ने इस खेल
में गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मेडल जीता। अब आते हैं भारत के एक राज्य मध्यप्रदेश के
छोटे से गांव जनवार में जो कि पन्ना जिले में स्थित है। जहां के बच्चे स्केटिंग
करते हैं। और सिर्फ स्केटिंग नहीं करते हैं बल्कि उसमें मास्टर हैं। यानी कि आने वाले सालों में भारत भी दुनिया के स्केटिंग चैंपियन की कतार में खड़ा होगा।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब-करीब 400 किमी की दूरी
पर स्थित इस गांव में 1400 लोग रहते हैं। एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार 7
साल पहले न तो यहां बिजली थी और न ही सड़क। ज्यादातर जमीन भी बंजर थी मतलब खेती
में भी लोगों का बुरा हाल था। मजदूरी और पलायन से त्रस्त इस गांव के बच्चे पढ़ाई-लिखाई में भी पिछड़े थे। पर आज इस गांव की तस्वीर कुछ अलग है। यहां से गुजरते हुए
आपको बच्चे स्केटिंग करते दिख जाएंगे। अब गांव तक सड़क और बिजली दोनों पहुंच
चुकी है। और महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं। पर यह अचानक कैसे हुआ
?

यह सब पढ़कर आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि सिर्फ 7 सालों में
यहां की तस्वीर कैसे बदल गई। दरअसल यह सब किसी चमत्कार से नहीं बल्कि जर्मनी की  ‘उलरिके रिनहार्ड’ की लगन और मेहनत से संभव हो सका। 60 वर्ष की उलरिके एक अखबार में
दिए गए साक्षत्कार में कहती हैं कि 
शुरूआत काफी मुश्किल थी। गांव वालों को
समझाना मुश्किल था। उन्होंने जब पहली बार जनवार
की हालत देखी तो वो विचलित हो गईं। उन्होंने स्पोर्ट्स प्रोग्राम शुरू करने
का फैसला लिया
, क्योंकि स्पोर्ट्स एक ऐसा माध्यम है, जिसकी
मदद से बच्चों के बीच भेदभाव को खत्म किया जा सकता है। जो गांव की कुरीतियों
जात-पात को मिटाने के लिए सबसे बड़ा कदम था जो सफल भी हुआ।

उलरिके कहती हैं, कि काफी प्लानिंग करने के बाद मेरे जेहन
में स्केटिंग शुरू करने का आइडिया आया। क्योंकि यह एक ऐसा गेम है जो बच्चों को
मेंटली और फिजिकली दोनों ही लेवल पर मजबूत बनाता है। इसके बाद साल 2015 में एक
स्केटिंग पार्क की नींव रखी। बच्चों के लिए यह काफी दिलचस्प और अनोखा मॉडल था।

अब गांव के बच्चे नेशनल लेवल पर प्रतियोगिता में भाग ले रहे
हैं। आज गांव के बच्चे अग्रेजी में ऑनलाइन क्लास लेते हैं, कंप्यूटर चलाते हैं। एक छोटी सी सकारात्मक कोशिश अब बड़ा बदलाव बन चुकी है। 

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Dr. Kirti Sisodia

Content Writer

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