कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक महिला की फोटो काफी वायरल हुई। जिसमें काले रंग के टी शर्ट के साथ लाल रंग की ओडिशा खंडुआ साड़ी पहने महिला मैराथन दौड़ रही थीं। इस मैराथन रनर का नाम है मधुस्मिता जीना दास, जो न सिर्फ मैराथन रनर हैं, बल्कि एक मां और उनकी हीरो भी हैं।
बचपन इंग्लैंड में बीता पर दिल हिंदुस्तानी
मधुस्मिता के माता-पिता 1978 में भारत से इंग्लैंड चले गए। उनका मधुस्मिता का जन्म भी इंग्लैंड में हुआ लेकिन उनके माता-पापा ने उनकी देखभाल देसी अंदाज में ही की। वे काफी धार्मिक हैं, भारतीय रीति-रिवाजों और त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं।
मैनचेस्टर मैराथन में पहनी मां की साड़ी
अमूमन ये धारणा होती है कि साड़ी पहनकर मुश्किल काम नहीं किए जाते हैं। लेकिन मधुस्मिता ने 42.5 किलोमीटर की मैनचेस्टर मैराथन में साड़ी पहनकर दौड़ लगा दी। उन्होंने अपनी मां की साड़ी पहनी। ये साड़ी मधुस्मिता के बचपन की याद जैसी है और उन्हों काफी पसंद भी है।
भारतीय महिलाओं से हुईं इंस्पायर
मधुस्मिता बताती हैं कि भारत में महिलाएं साड़ पहनकर ही पूरा काम कर लेती हैं। खाना बनाने, कपड़े धोने से लेकर घर के सभी काम। ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न वो भी साड़ी में मैराथन दौड़ें। उन्होंने इसे पूरा किया और अब वे काफी खुश हैं।
डिप्रेशन से निकलने शुरू कर दी रनिंग
25 साल की उम्र में मधुस्मिता की शादी हो गई। पति के साथ दुबई चली गईं जहां वे बैंक में काम करने लगी।
2008 में उन्हें पहला बेटा हुआ। उनकी जिंदगी तब बदल गई जब उन्हें लगा कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन में हैं। उन्होंने इससे खुद को बाहर निकालने के लिए दौड़ना शुरू किया। रनिंग उन्हें इतनी अच्छी लगी कि जब उनका बेटा 7 महीने का हुआ तब उन्होंने पहली बार मैराथन में हिस्सा लिया।
अब स्पेशल बच्चों की टीचर
मधुस्मिता को तारे जमीन पर फिल्म काफा प्रेरणादायी लगी। उन्होंने सोचा कि दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। उन्होंने इंग्लैंड जाकर 39 साल की उम्र में यूर्निवसिटी से टीचिंग कोर्स किया। बाद में उन्हें एक स्कूल में जॉब मिली। आज मधुस्मिता कई बच्चों की जिंदगी संवार रही हैं।