Karpoori Thakur: 23 जनवरी 2024 को भारत सरकार ने भारत रत्न के लिए एक नाम की घोषणा की। ये व्यक्ति न सिर्फ बिहार की राजनीति के पुरोधा थे साथ ही उन्हें ‘जननायक’ यानी कि ‘Hero of the people’ भी कहा जाता है। उनका नाम है कर्पूरी ठाकुर। कर्पूरी ठाकुर की पहचान पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जानी जाती थी। जानते हैं उनसे और उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…
प्रारंभिक जीवन
कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) का जन्म जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। अब इस गांव को उनके नाम पर समर्पित किया गया है, ये गांव कर्पूरीग्राम कहलाता है। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की। जब वो सिर्फ 14 साल के थे तब उन्होंने अपने गांव में नवयुवक संघ की स्थापना की। इसके साथ ही वो गांव में होम विलेज लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन के रूप में अपनी सेवा देने लगे। साल 1942 में पटना विश्वविद्यालय पहुंचने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन और बाद में समाजवादी पार्टी और आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए।
राजनीतिक जीवन
कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को यूं ही जननायक (jannayak) नहीं कहा जाता है, उन्होंने अपना जीवन राजनीति के सहारे दलित, पिछड़े और गरीब लोगों के लिए बहुत कुछ किया। साल 1952 में भारतीय गणतंत्र के प्रथम आम चुनाव में ही वे समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए। इस वक्त Karpoori Thakur सिर्फ 31 साल के थे। संसदीय कार्यों में वो काफी तेज थे, इसके साथ ही समाजवादी आंदोलन को जमीं पर उतारने का भी पूरा प्रयास उनके द्वारा हमेशा किया जाता रहा।
1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के दिग्गज नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा को चुनाव में हराकर राज्य मुख्यमंत्री बनें। लोकनायक जयप्रकाशनारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया कर्पुरी ठाकुर के राजनीतिक गुरू माने जाते थे।
कर्पूरी ठाकुर के जीवन से जुड़ी 5 दिलचस्प बातें
- उनके करीबी कहते हैं कि कर्पूरी जी आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण के दबाव में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। कार्यकर्ताओं ने चंदा जुटाने की बात कही तब कर्पूरी जी ने तय किया कि चवन्नी-अठन्नी और दो रुपये से ज्यादा सहयोग नहीं लिया जाएगा। लेनी है। जयप्रकाश नारायण की धर्मपत्नी प्रभावती देवी ने जब उनसे आग्रह किया कि उनसे पांच रुपया चंदा स्वीकार किया जब तब कर्पूरी जी ने पत्नी की बात मानी थी। समाजवादी नेता दुर्गा प्रसाद सिंह ने एक साक्षात्कार में बताया कि वो हर बार चंदे के पैसे से ही चुनाव लड़ते थे। एक-एक पैसे का हिसाब खुद बारीकी से रखते थे और एक पाई भी निजी काम में नहीं लगाते थे।
- कर्पूरी ठाकुर एक बेहतरीन वक्ता थे, उनकी अपनी वाणी पर कठोर नियंत्रण था, उनका भाषण आडंबर-रहित, ओजस्वी, उत्साहवर्धक और चिंतनपरक माना जाता था, कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वे इस तरह के शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल करते थे कि जिसे सुनकर अपोजिशन पार्टी गुस्सा तो होते थे लेकिन वह यह आरोप नहीं लगा पाते कि कर्पूरी ठाकुर ने उसका अपमान किया है।
- एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही आना-जाना करते थे। ये उनका सिद्धांत था कि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती है।
- एक दिलचस्प वाकया हमेशा इतिहास में याद किया जाता रहेगा, दरअसल कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए। बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देखकर रो पड़े। क्योंकि ने अपने लिए एक मकान तक नहीं बनवाया। उनके ईमानदारी के कई किस्से प्रचलित हैं।
- सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार ने सस्ती दर पर जमीन दी, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने जमीन लेने से मना कर दिया। दल के कुछ विधायकों ने जब उनसे पूछा कि कर्पूरी जी आपके बाल-बच्चे कहां रहेंगे तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेंगे।
Positive सार
कर्पूरी ठाकुर को ठीक उनकी जयंती के एक दिन पहले मरणोपरांत भारत का सबसे बड़ा सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा की गई है। कर्पूरी ठाकुर जी ने अपना पूरा जीवन निस्वार्थ सेवा भाव से देश के लिए वो सबकुछ किया जो एक सच्चे भारतीय की पहचान है। कर्पूरी ठाकुर जी सदैव प्रेरणा बनकर हर भारतीय के दिल में जीवित रहेंगे।