Herbal color: बिहार के मधुबनी पेटिंग की एक पहचान पूरी दुनिया में है। रंग-बिरंगी सुंदर चित्रकारी मधुबनी पेटिंग के संरक्षण के लिए बिहार की शिल्पी काम कर रही हैं। इतना ही नहीं शिल्पी मधुबनी पेंटिंग को बनाने के लिए हर्बल कलर्स का इस्तेमाल करती है। जानते हैं क्या है पूरी कहानी…
कला के संरक्षण को दे रही हैं बढ़ावा
शिल्पी खुद तो पिछले 10 सालों मधुबनी कला के संरक्षण का काम कर रही हैं। साथ ही वो आने वाली पीढ़ियों को भी इससे जोड़ने का काम कर रही हैं। दरअसल शिल्पी फूल-पत्तियों से हर्बल रंग (Herbal color) तैयार कर बच्चों को मधुबनी पेंटिंग सिखाती हैं। फूल-पत्तियों से रंग तैयार कर मिथिला पेंटिंग और टिकुली कला में रंग भरने वाली शिल्पी की पहचान अब राष्ट्रीय स्तर पर है।
ऐसे हुई शुरूआत
शिल्पी को बचपन से ही कला का शौक था। उन्होंने काफी कम उम्र से रंगों और चित्रकारी से अपना रिश्ता जोड़ लिया था। साइकोलॉजी से पीजी तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने बचपन के शौक को ही अपना करियर बनाया। शिल्पी को सबसे पहले मिथिला पेंटिंग ने आकर्षित किया।
प्राचीन रंगों को तैयार करने का तरीक खोजा
शिल्पी की खास बात ये है कि वो चित्रकारी के लिए आर्टिफिशियल रंगों का इस्तेमाल नहीं करती हैं। वो पेंटिंग हर्बल रंग (Herbal color) से करती हैं। जब उन्होंने पेंटिंग को करियर बनाने के बारे में सोचा तो उनके मन में यह जानने की जिज्ञासा पैदा हुई कि प्राचीन काल में रंग कैसे बनते थे।
रामायण से मिली प्रेरणा
शिल्पी कहती हैं कि उन्हें रामायण काल से प्रेरणा मिली। उसी से उन्हें फूल-पत्तियों से रंग तैयार करने की जानकारी भी प्राप्त हुई। उन्होंने इस बात पर काफी रिसर्च की और फिर फूल और बत्तियों से रंग बनाने पर काम शुरू किया। इसके बाद उन्होंने टिकुली कला और मधुबनी पेंटिंग भी इन्हीं रंगों से बनाए। पहले शिल्पी के काम को सिर्फ बिहार में पहचान मिली थी अब उन्हें राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल चुकी है।
मिल चुके हैं कई सम्मान
शिल्पी के खूबसूरत कला, नई पीढ़ी को प्राचीन कला से जोड़ने और ऑर्गेनिक रंगों को बढ़ावा देने के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। राज्य और देश स्तर पर 40 से अधिक सम्मान अब तक उन्हें मिल चुका है। शिल्पी फिलहाल 15 बच्चों को प्रशिक्षण दे रही हैं। वो कहती हैं कि बाजार में बिकने वाले सिंथेटिक रंग पर्यावरण को प्रदूषित कर देते हैं। यही वजह है कि वो खुद ऑर्गेनिक रंग बनाती हैं। शिल्पी का उद्देश्य है कि वो कला के जरिए पर्यावरण को सुरक्षित, स्वच्छ और शुद्ध रखें। शिल्पी घर पर ही मिथिला पेंटिंग वाली साड़ी, दुपट्टा और सूट भी बनाती है।
खुद के साथ दूसरों को भी दिया है रोजगार
शिल्पी अपने इस काम से आज पैसे भी कमा रही हैं। शिल्पी हर्बल रंग (Herbal color) से बनें एक पेंटिंग तैयार करने में 100 से 200 रुपये खर्च करती हैं। इसे वो 1500 रुपये में बेचती हैं। इसी सूट, साड़ी पर मधुबनी पेंटिंग भी करके बेचती हैं। उन्हें अब ऑनलाइन ऑर्डर भी मिलने लगे हैं। शिल्पी आज खुद के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी रोजगार से जोड़ रही हैं।
Positive सार
कला का ये हर्बल रंग (Herbal color) काफी सुंदर है। जिसे शिल्पी औरों तक पहुंचा रही है। कला के प्रति उनकी समझ, उनका समर्पण भारत के सांस्कृतिक समृद्धता को संजोने का काम कर रही हैं। साथ ही इससे आने वाली पीढ़ी को जोड़कर भी वो समाज को एक बेहतर दिशा दे रही हैं।