बेजुबानों को जिंदगी से जोड़ रही है ये युवा, बन रही हैं दया की मिसाल!

भगवान बुद्ध ने कहा है, कि सृष्टि पर रहने वाले हर जीव को एक-दूसरे के लिए जीना चाहिए, दूसरों के सुख दुख में साथ होना ही पृथ्वी के मनुष्य का पहली जिम्मेदारी है। बुद्ध की इस बात से वाकिफ रखती हैं गाजियाबाद की एक 25 साल की युवा लड़की निहारिका, जिन्होंने नि स्वार्थ प्रेम की एक अलग ही परिभाषा दी है। 

बेजुबानों की आवाज बनीं निहारिका

सड़क पर रहने वाले बेजुबान स्ट्रे डॉग्स के बारे में कम ही लोग सोचते हैं। निहारिका उन कम लोगों में से एक हैं। गाजियाबाद की 25 साल की निहारिका राणा पिछले तीन साल से जानवरों को रेस्क्यू करने और इन बेजुबानों की मदद के लिए खुद के दम पर एक अभियान चला रही हैं। आज ‘निहारिका राणा की कोशिश एक फाउंडेशन में बदल चुकी है। इस संस्था के तहत वे रोज खुद 100 से अधिक बेजुबानों को खाना खिलाने का काम करती हैं। इतना ही नहीं उन्होंने इन तीन सालों में 500 घायल जानवरों को रेस्क्यू भी करने का का भी काम किया है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि वो ये सारे काम अपनी फुल टाइम जॉब के साथ करती हैं और इन कामों में अपनी आधे से ज्यादा सैलरी लगाती हैं। 

कॉलेज प्रोजेक्ट से मिली प्रेरणा 

निहारिका हमेशा से अपने आस-पास के कुत्तों को खाना खिलाती थीं। उन्हें हमेशा स्ट्रीट डॉग्स के लिए हमदर्दी रहती थी। एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में निहारिका ने बताया कि जानवरों के प्रति इसी प्यार के कारण, उन्होंने अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए जानवरों को रेस्क्यू करने के काम को चुना था। इसमें वे घूम-घूमकर घायल और बीमार कुत्तों की सहायता करती थीं। कुछ समय बाद वह प्रोजेक्ट तो पूरा हो गया लेकिन बेजुबानों की सेवा करने का काम उन्होंने कभी भी बंद नहीं किया, बल्कि उस प्रोजेक्ट से उन्हें अपने काम को जारी रखने की प्रेरणा मिली। निहारिका कहती हैं कि पहले वो सिर्फ 20-25 कुत्तों को ही खाना खिलाती थीं, लेकिन लॉकडाउन के समय ये संख्या बढ़कर 120 के करीब हो गई। सड़क पर खाने-पीने की दुकानें और लोगों के न रहने से इन बेजुबानों को एक समय का खाना भी नहीं रहा था। 

निहारिका ने उस समय अपने घर से 10 किमी तक दूर जाकर खाना खिलाने के काम को जारी रखने का निर्णय लिया। धीरे-धीरे निहारिका का अपने काम के प्रति लगाव इतना बढ़ गया कि वह इनकी वैक्सीन से लेकर इलाज तक का ध्यान रखने लगीं। 

निहारिका के काम को अब पहचान मिलने लगी है। अब लोग उन्हें फ़ोन करके घायल जानवरों की जानकारी देते हैं, जिसे निहारिका रेस्क्यू करके शेल्टर होम तक पहुँचाने का काम करती हैं। वे हर दिन सुबह 5 बजे उठकर खुद खाना बनाती हैं और फिर निकल पड़ती है अपने इस नेक काम को पूरा करने की ओर। निहारिका का काम ये प्रेरणा देता है कि किसी से कुछ पाने की इच्छा रखे बगैर भी बहुत कुछ दिया जा सकता है। उनके जज्बे और नेक काम को seepositive सलाम करता है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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