Inspiration: थॉमस अल्वा एडिशन की कहानी तो हर किसी ने सुनी होगी, जिन्होंने 1000 असफलता के बावजूद तब तक हार नहीं मानी जब तक वे सफल नहीं हो गए। अल्वा एडिशन की कहानी को एक बार फिर से दोहराया है राजस्थान के भंवरलाल मुंढ ने, जिनके मन में सफलता की आस ऐसी थी जिसने उन्हें हार मानने से नहीं रोका। ऐसा भी नहीं था भंवरलाल की राह आसान थी, जितनी उनकी असफलता की कहानी है उतनी ही बड़ी कहानी उनके गरीबी के संघर्ष की भी है।
ये है पूरी कहानी
बाड़मेर के सनावड़ा गांव के रहने वाले भंवरलाल मुंढ ने 1999 में 12वीं पास किया था। जिसके बाद से ही वे लगातार सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे। शुरुआत में तो जब उन्हें असफलता मिली तो उन्होंने किसी आम युवा की तरह ही ये सोचा कि अब नहीं तो फिर से कोशिश करते हैं। लेकिन उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने जितनी बार परीक्षाएं दी उतनी बार असफल हुए। उन्हें लगभग 16 बार असफलता का मुंह देखना पड़ा। लेकिन इतनी असफलताओं के बावजूद उनकी इच्छाशक्ति इतनी मजबूत थी कि उन्होंने कोशिश करनी नहीं छोड़ी। परिणाम ये हुआ कि उन्हें 41 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पसंद की सरकारी नौकरी मिल ही गई।
परीक्षा पास कर बनें शिक्षक
भंवरलाल ने परीक्षा पास किया। उनका चयन तृतीय श्रेणी अध्यापक भर्ती सामाजिक विज्ञान से हो गया है। उन्होंने कई भर्तियों में बहुत कम अंकों से पीछे रहने के बावजूद भी हार नहीं मानी। आर्थिक रूप से काफी संघर्षों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। 2010 में बीएड की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने अपना मुकाम हासिल किया। अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए भंवरलाल गुजरात के ऊंझा में मजदूरी का काम करते थे।
लगातार असफलता के बावजूद नहीं रुके
ऐसा नहीं है कि भंवरलाल को पूरी तरह से असफलता मिली। हर बार उन्हें 1 से 2 नंबर पर ही रुक जाना पड़ता था। कभी लिखित परीक्षा पास की इंटरव्यू रह गया, कभी फिजिकल में रुक गए। ऐसा करते हुए भंवरलाल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। भंवरलाल की सफलता ये सीख देती है, कि रास्ते तो मुश्किल हो सकते हैं, कई बड़े और मुश्किल बैरियर भी आएंगे। लेकिन लगातार कोशिश करने वाले काभी हार नहीं मानते हैं। आज भंवरलाल का जीवन बिल्कुल वैसा है जैसा वो चाहते थे। वे मजदूरी छोड़कर सरकारी नौकरी कर रहे हैं और अपने जैसे कई युवाओं की प्रेरणा भी बन रहे हैं।