ISRO’s Century: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने रचा इतिहास!

ISRO’s Century: भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने 100वें मिशन के रूप में नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 (NVS-2) का सफल प्रक्षेपण किया। यह मिशन 29 जनवरी सुबह 6:23 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) के जरिए पूरा किया गया। इसरो के इस ऐतिहासिक मिशन ने देश की अंतरिक्ष तकनीक को एक नया आयाम दिया है।

वी. नारायणन की अगुवाई में मिशन

यह मिशन इसरो (ISRO) के नए अध्यक्ष वी. नारायणन के नेतृत्व में पहला महत्वपूर्ण प्रक्षेपण था। उन्होंने 13 जनवरी को पदभार संभालने के बाद इस मिशन को सफल बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रक्षेपण से पहले नारायणन ने तिरुपति मंदिर में पूजा-अर्चना कर मिशन की सफलता की प्रार्थना की।

27.30 घंटे की उल्टी गिनती और सफल प्रक्षेपण

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रक्षेपण की उल्टी गिनती 28 जनवरी तड़के 2:53 बजे शुरू हुई। लगभग 20 मिनट की उड़ान के बाद उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया गया। यह जीएसएलवी की 17वीं उड़ान थी और स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण से लैस इस यान ने इस मिशन को पूरा किया।

आधुनिक नेविगेशन का नया आयाम

एनवीएस-2, नाविक (NavIC) श्रृंखला का दूसरा उपग्रह है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत और इसके आसपास के क्षेत्रों में सटीक स्थान, गति और समय की जानकारी प्रदान करना है। यह उपग्रह कई मायनों में महत्वपूर्ण है जैसे..

  • भूमि, हवाई और समुद्री नेविगेशन को अधिक सटीक बनाएगा।
  • कृषि संबंधी डेटा संग्रहण में सहायता करेगा।
  • बेड़े प्रबंधन और मोबाइल लोकेशन आधारित सेवाओं को उन्नत करेगा।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और आपातकालीन सेवाओं के लिए भी उपयोगी साबित होगा।

इसरो के भविष्य के लक्ष्य और तीसरा लॉन्च पैड

इसरो प्रमुख ने लॉन्च के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया और बताया कि इसरो के तीसरे लॉन्च पैड के लिए 400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इससे भविष्य में भारी रॉकेटों का प्रक्षेपण संभव हो सकेगा।

क्या था भारत का पहला अंतरिक्ष मिशन?

भारत के अंतरिक्ष मिशनों की नींव 19 अप्रैल 1975 को ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह के लॉन्च के साथ रखी गई थी। जिसका नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया। इसे सोवियत यूनियन के कपुस्टिन यार से कॉसमॉस-3 एम रॉकेट के जरिए लॉच किया गया। इसका वजन 360 किलोग्राम था और ये लगभग 6 महीने (नाममात्र) लेकिन कक्षीय जीवन लगभग 17 वर्षों का रहा। ये उपग्रह मुख्य रूप से वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयोगों के लिए उपयोग किया गया था।

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भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में बढ़ती ताकत

इसरो द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों से भारत आज वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभर चुका है। एनवीएस-2 जैसे मिशन न केवल देश की तकनीकी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी हैं।

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Rishita Diwan

Content Writer

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