बच्चों की बात सुने
स्टडी में 40% युवाओं का कहना है कि कि माता-पिता उनकी जिंदगी के बारे में चर्चा नहीं करते हैं। उनकी प्रतिक्रिया को माता-पिता भी जानें। इसे ही ‘फैमिली टॉक’ पहल के रूप में देखा गया है। इससे किशोरों को भावनात्मक समर्थन के लिए पैरेंट्स के पास जाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। जो मजबूत रिश्ते का संकेत देते हैं।
माता-पिता ले सकते हैं दूसरों से मदद
एक्सपर्ट का मानना है कि – मानसिक स्वास्थ्य विकारों से निपटने के लिए उनकी समझ होना सबसे पहला स्टेप है। युवा जब चिंतित या उदास होते हैं तो पैरेंट्स को शांतिपूर्ण, प्रभावी मदद देने और अपनी चिंता को प्रबंधित करने में सहयोग की जरूरत हो सकती है। अवसाद-चिंता का इलाज संभव है, इसके लिए कभी मदद लेनी पड़े तो परहेज बिल्कुल भी न करें।
देखभाल करने वालों का रखें ख्याल
माता-पिता को भी मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत होती है। इस रिसर्च के मुताबिक स्वास्थ्य केंद्रों, कार्यस्थलों व सामुदायिक संस्थानों के जरिए माता-पिता के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से पूरे परिवार को फायदा हो सकता है। माता-पिता चाहे उदास हों या नहीं, हर स्थिति में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
ईमानदारी से करें चर्चा
अवसादग्रस्त पैरेंट्स के किशोर उनके व्यवहार के लिए कई बार खुद को दोषी मानते हैं। इसलिए पैरेंट्स को सीखना चाहिए कि बच्चों से बात करते वक्त अपने अनुभवों को लेकर वे पूरी तरह से ईमानदार रहें।
उद्देश्यों को करें तय
रिसर्च में 26% किशोरों ने माना कि जीवन में उन्हें उद्देश्य महसूस नहीं हुआ, जबकि अवसाद से इसका सीधा संबंध होता है। बच्चों का जीवन अर्थपूर्ण बनाने में पैरेंट्स को मदद करनी चाहिए ताकि उनका समग्र रूप से कल्याण हो।